अपंग - 63

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------------ कैसी गुहार, इस छोटे से बच्चे की ! क्या इस प्रवाह में बह गए थे दोनों ? जब दोनों को होश आया, वे एक-दूसरे से आँखें नहीं मिला पा रहे थे | कैसे नाज़ुक क्षणों के घेरे में फँस गए थे दोनों ! जिससे वे बचते रहे थे, वही सब कुछ उनकी देहों को थर्रा रहा था | भानुमति रिचार्ड के सीने में मुँह छिपाकर सिसक उठी | अंतर में मीठी ज्वाला के शांत होने की संतुष्टि के साथ मन के भीतर कहीं दूसरे प्रश्न आवरण में सिकुड़े पड़े थे | रिचार्ड पूरी रात भर सिटिंग -रूम में ही