किंबहुना - 2

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रात से ही सिर भारी था। सुबह देर से नींद खुली और बच्चों को भी नहीं उठाया पढ़ने के लिए, जो बिना जगाए कभी जागते नहीं। उन्हें कोई परवा नहीं जब तक सिर पर माँ है। पता है, पिता होकर भी नहीं। एक वही है जो घर बाहर सब दूर खट रही है...। पर बच्चे तो बच्चे ठहरे, उन्हें इतनी समझ कहाँ? उसने सोचा और दौरे की दुष्कल्पना कर फिर से बहन के मामा श्वसुर का नम्बर डायल कर दिया! भरत मेश्राम, एक नम्बर जो अब नाम था, स्क्रीन पर चमकने लगा। और जैसे ही फोन उठा, बात करते