किंबहुना - Novels
by अशोक असफल
in
Hindi Fiction Stories
जीएम मीटिंग लेने वाले थे। आरती के हाथ पाँव फूल रहे थे।
फाउन्डेशन की एक और प्रोजेक्ट अफसर नीलिमा सिंह उसे नष्ट कराना चाहती है। जीएम से व्यक्तिगत सम्बंध हैं उसके। स्ट्रेंथ मुताबिक फाउन्डेशन में प्रोजेक्ट अफसर की एक ही ...Read Moreहै। पहले वह जयपुर में थी तो सुखी थी। कोई प्रतियोगी न था। पर मुम्बई मैनेजमेन्ट ने उसका तबादला यहाँ रवान में कर दिया। एक साल में कड़ी मेहनत और संघर्ष से उसने काम जमा लिया तो कटनी फाउन्डेशन से अचानक नीलिमा भी यहीं आ गई। उसके आ जाने से पोस्ट सरप्लस हो गई। आरती पर एक बार फिर तबादले की तलवार लटक गई। पता न था, एक साल बाद ही यह गाज गिरने लगेगी। नीलिमा की तरह वह किसी को मैनेज नहीं कर सकती। वह तो ठहरी भावुक कवि-हृदय। आए दिन होने वाली इन बातों से इतना तनाव रहने लगा कि वह अपना लिखना-पढ़ना और बच्चों के साथ हँसना-बोलना भूल गई।
सिर तनाव से फटा जा रहा था। डेढ़ दो घंटे से फोन पर भाभी से दुखड़ा रो रही थी। उसने रास्ता बताया कि रेखा को फोन कर लो, दीदी। रेखा रायपुर में पुलिस इंस्पैक्टर है। उसके मामा श्वसुर भिलाई केपी सीमेंट में डीजीएम हैं। और भाभी ने ही यह क्लू दिया था कि, दीदी आपके सीमेंट फाउन्डेशन के जीएम से उनका जरूर कुछ न कुछ परिचय निकल आएगा! उनके एक फोन से ही आपको राहत मिल जाएगी।
जीएम मीटिंग लेने वाले थे। आरती के हाथ पाँव फूल रहे थे। फाउन्डेशन की एक और प्रोजेक्ट अफसर नीलिमा सिंह उसे नष्ट कराना चाहती है। जीएम से व्यक्तिगत सम्बंध हैं उसके। स्ट्रेंथ मुताबिक फाउन्डेशन में प्रोजेक्ट अफसर की एक ...Read Moreपोस्ट है। पहले वह जयपुर में थी तो सुखी थी। कोई प्रतियोगी न था। पर मुम्बई मैनेजमेन्ट ने उसका तबादला यहाँ रवान में कर दिया। एक साल में कड़ी मेहनत और संघर्ष से उसने काम जमा लिया तो कटनी फाउन्डेशन से अचानक नीलिमा भी यहीं आ गई। उसके आ जाने से पोस्ट सरप्लस हो गई। आरती पर
रात से ही सिर भारी था। सुबह देर से नींद खुली और बच्चों को भी नहीं उठाया पढ़ने के लिए, जो बिना जगाए कभी जागते नहीं। उन्हें कोई परवा नहीं जब तक सिर पर माँ है। पता है, पिता ...Read Moreभी नहीं। एक वही है जो घर बाहर सब दूर खट रही है...। पर बच्चे तो बच्चे ठहरे, उन्हें इतनी समझ कहाँ? उसने सोचा और दौरे की दुष्कल्पना कर फिर से बहन के मामा श्वसुर का नम्बर डायल कर दिया! भरत मेश्राम, एक नम्बर जो अब नाम था, स्क्रीन पर चमकने लगा। और जैसे ही फोन उठा, बात करते
सात-आठ दिन शांति से कट गए। इस बीच वाट्सएप पर रोज सुबह भरत जी की ओर से जिन्हें तमाम कोशिश के बावजूद वह मामा जी नहीं कह पाई, सर जी और जी सर ही बोलती, फूलों का गुलदस्ता आ ...Read Moreजानबूझ कर काफी देर बाद वह गुडमार्निंग सर बोलती। लेकिन रात में फिर सोने से पहले गुड नाइट आ जाती और जुड़े हुए गेहुँआ हाथ तो वह गुडनाइट सर लिख कर छुट्टी पा लेती। लेकिन जब मैनेजमेन्ट ने उसे बताया कि मुम्बई से विजिटिंग अफसर दौरे पर आ रहे हैं, वे आपके फील्ड का भी दौरा करेंगे तो फिर
सुबह वह जल्दी जल्दी तैयार होकर निकल ही रही थी कि भरत जी का फोन आ गया। उन्होंने बताया कि मुम्बई से सिंधुजा रवान में जो विजिटिंग अफसर दौरे पर आया है, वो मेरे ब्रदर राम का फ्रेंड है। ...Read Moreफोन कर दिया है। तुम सिर्फ परिचय दे देना कि- सर हम राम मेश्राम जी के रिश्तेदार हैं! विजिटिंग अफसर के दौरे के नाम पर फूले आरती के हाथ-पाँव यकायक सामान्य हो गए। उसके मुँह से यही निकला कि- हम आपका ये एहसान कैसे चुकाएँगे! इसमें एहसान की क्या बात, आप रिश्तेदार हैं, अपना समझें और हमेशा अपनी बात
दफ्तर का माहौल लगभग उसके अनुकूल हो गया था। अब बात बेबात एजीएम की झिड़की या नीलिमा के कटाक्ष नहीं मिल रहे थे। इसी बीच गणेश उत्सव आ गया तो झांकियों के साथ आए दिन गीत-भजन, नाटक-नाटिकाओं का दौर ...Read Moreशुरू हो गया। संचालन के लिए उससे रोज कहा जाता और वह रोज इन्कार कर देती। पर जिस दिन पुलिस कप्तान को मुख्य अतिथि बनाया गया, उसने इसलिए हामी भर दी कि मंच की विविध प्रस्तुतियों से उन्हें बोरियत हो तो संचालन से सरसता बनी रहे। गीत-भजन, नाटिका, गरवा और बीच-बीच में उसकी कविताएँ। संचालन इसलिए भी उसी से
ऊपर से दिख रही शांति के नीचे भीतर ही भीतर एक गहरा षड़यंत्र चल रहा था। आरती को तो कानोंकान खबर न हुई। जब अंडरटेंकिंग फार्म आ गया कि मैं छँटनी नहीं चाहती, कटनी फाउंडेशन में जाने को तैयार ...Read Moreतब पता चला। लगा पैरों तले की जमीन खिसक गई। क्योंकि विलय से पूर्व बीसीसी से 80 कर्मियों की छँटनी हो चुकी थी! पता क्या, अब भी कुछेक की छँटनी शेष हो! घबड़ा कर उसने फिर भरत जी को फोन लगाया। और वे फोन पर ही एकदम लाल-पीले हो गए। आरती को उनका वो आदिवासी तेवर अच्छा लगा। उसने
कंसेट दिलवाकर रात होने से पहले भरत भिलाई लौट गया। आरती ने अनिच्छा से बच्चों के लिए बनाया और खिला कर खुद वैसी ही सो गई। हक मारे जाने का एहसास बहुत तेजी से दिल में घर गया था। ...Read Moreकिसी ने गर्दन पर तलवार मार दी हो। मुल्ला नसुरुद्दीन का किस्सा रह-रह कर याद आ रहा था। कि जब वह पेंशन की रकम लेकर लौट रहा था, लुटेरे ने छुरी गर्दन पर रख दी थी। और तब भी मुल्ला ने कहा, ठहरो, सोचने दो! तो लुटेरे को हैरत हुई कि तुम अजीब आदमी हो, मौत सिर पर नाच
आरती का विश्वास दृढ़़ से दृढ़़तर हो गया था कि आलम के उस औरत से सम्बंध हैं। वह नियमित उसके घर जाता है। आलम को मुझसे कोई प्रेम नहीं, यहाँ तक कि मेरे शरीर से भी बहुत गरज नहीं ...Read Moreउसकी जरूरतें कहीं और पूरी हो रही हैं। और उसे तो आलम से रत्ती भर भी प्रेम नहीं था, इसलिए उसके लिए उसके साथ सोना, घर के काम निबटाने जैसा था। जिसमें कि कोई रस नहीं था। जिसे रति कहते हैं, शायद बिना प्रेम के संभव नहीं थी! और मजे की बात यह कि आलम के लिए भी वह
9 उथल-पुथल समाप्त हो गई और अब एक शांत झील अपनी मंद लहरों के साथ हर पल मुस्कराने लगी। इसी बीच उसने कई एक सुंदर कविताएँ लिखीं और अपना खुद का एक साहित्यिक समूह बना लिया, जिसकी बलौदा बाजार ...Read Moreगायत्री मंदिर स्थित हाॅल में हर माह एक गोष्ठी होने लगी। साल भर के भीतर ही वह छत्तीसगढ़ी भी सीख गई थी, इसलिए गोष्ठी में सुनाने हिन्दी के अलावा छत्तीसगढ़ी में भी कविताएँ लिखने लगी। बीच-बीच में रायपुर की गोष्ठियों से भी आमंत्रण मिल जाता। यों कभी गढ़कलेवा में तो कभी वृंदावन गार्डन में पहुँचने का अवसर मिल जाता। भरत
उसे पता था कि मैं आलम से प्यार नहीं कर सकती पर अगर उसका ये अत्याचार, गाली-गलौज, मार-पिटाई, काम न करना; कुछ आदतें सुधर जाएँ तो किसी तरह जी लिया जाए! बहुत समझाने के बाद दो एक दिन ठीक ...Read Moreपर जहाँ कोई ऐसी बात हुई जो उसे पसन्द न आए तो फिर वो अपने असली रूप में आ जाता। जिस-जिस से आलम ने पैसे उधार लिए थे, वे पैसा माँगने के लिए उसे ढूँढ़ते रहते। इसी डर से उसने दुकान खोलना बंद कर दिया तो अब आय का कोई साधन नहीं बचा। घर में दो समय का खाना
बहन की शादी जो उसकी जगह राकेश से होनी थी, उसका समय पास आने लगा। घर में आलम का मान और बढ़ गया। पहला दामाद था वो, और सब भाई बहन छोटे थे, इसलिए यह सोच कर कि वही ...Read Moreकाम सँभालेगा, उसे सारी जिम्मेदारियाँ दे दी गईं। सामान लाने, सारी व्यवस्थाएँ करने, वो जब जितने पैसे माँगता दे दिए जाते। शादी निबटने तक आलम ने किसी से दुव्र्यवहार नहीं किया, सिवाय आरती के। वह उसके पास आकर भुनभुनता रहता। गालियाँ देते हुए कहता, तुम्हारी मम्मी ने ऐसा कह दिया, वैसा कह दिया। तुम्हारा भाई किस काम का! क्या
सुबह जल्दी उठ कर, नौ बजे तक वे लोग बलौदा बाजार पहुँच गए। भरत ने उन्हें बस में बिठा दिया था। वह भी जल्द उठ गया था, क्योंकि उसे भी अपनी ड्यूटी पर भिलाई पहुँचना था। बच्चों की तो ...Read Moreनिबट गई थीं सो छुट्टियाँ चल रही थीं। पर आरती को तो देर से ही सही ऑफिस जाना था और फिर फील्ड पर भी। सो, बच्चों को घर छोड़ स्कूटी उठा वह रवान पहुँच गई। रात में नींद पूरी नहीं हुई थी। दिन भर उबासियाँ आती रहीं। सिर दर्द से फटता रहा। पर वह बहुत मजबूत इरादे वाली औरत
13 रायपुर से लौट कर माँ-बेटी एक-एक दिन गिन रही थीं। यों डूबते दिन के साथ निराशा और उगते के साथ आशा बढ़ रही थी। उन्नीसवें दिन भरत ने बताया कि रुकू को लेकर, साथ ही उसके उपयोग का ...Read Moreसामान भी लेकर कल सुबह आ जाओ। क्योंकि दाखिले के साथ उसे यही छोड़ कर जाना होगा। खुशी का पारावार न रहा। माँ-बेटी खुशी-खुशी तैयारी में लग गईं। मगर दोनों की इस खुशी में जो फर्क था वह यह कि रुकू तो खूब उत्साहित थी, मगर आरती की आँखें भरी-भरी थीं। सुबह ही पुष्पा को बुला कर घर और हर्ष
14 मगर आलम से पिण्ड छुड़ाना इतना आसान कहाँ था। उसने तो मामू और बड़े अब्बू को महीने भर के भीतर ही ये खबर दे दी थी कि- आरती एक बड़ी कंपनी में काफी ऊँची पोस्ट पर पहुँच गई ...Read Moreआप लोग चिंता न करें, अब हम लोग बहुत जल्द और आसानी से आपका पैसा लौटा देंगे! फलस्वरूप उनकी माँग बढ़ने लगी। चिट्टियाँ आरती के पते पर आने लगीं। तब यही लगा कि वक्त आ गया है, अब आलम से पिण्ड छुड़ा ही लिया जाय। अन्यथा लाखों का कर्ज पटाना पड़ा तो बच्चों का भविष्य गर्त में चला जाएगा! परिणाम
15 दफ्तर में सार्वजनिक अवकाश था, मगर ऑडिट के सिलसिले में नीलिमा और आरती दोनों को बैठना पड़ा। तो मौका पाकर नीलिमा ने बात उकसाई, शादी कब कर रही हो आरती! यकायक अप्रत्याशित प्रश्न सुन वह चैंक गई। फिर ...Read Moreकर बोली, जल्दी नहीं, पहले दोनों का तलाक तो हो जाए! तब कहा कि- तो अब तुम अपने ऊपर चैकीदार बिठाओगी! क्या मतलब आरती चकरा गई। मतलब यही बहना, नीलिमा ने समझाई, कि- दुबारा आदमी करके फिर से फालतू में पालतू गाय बनने जा रही हो, तुम! अरे, ये बात नहीं, वह चिढ़ती सी बोली, हमें न पहले शौक था,
16 जाहिर है, अब आरती की समझ साफ थी और यह परिस्थितियों की देन थी। अनुभव ही प्रत्यक्ष प्रमाण है। उससे बड़ी कोई पाठशाला नहीं। इसी को कहते हैं, बिना मरे स्वर्ग नहीं सूझता! उसने बिना आहत हुए भरत ...Read Moreअनुबंध से अपने आपको मुक्त कर लिया था। अब उसके सामने एक दूसरी ही राह थी। अब वह अपने बलबूते पर ही खुद को और अपनी गृहस्थी को उबारेगी, ऐसा निश्चय कर लिया था। क्योंकि मनुष्य मनस्वी है। उसके पास मन की शक्ति है, तो संकल्प ले सकता है जो निश्चित रूप से कार्य में परिणित हो जाता है। वह
17 उसे बहुत फील हो रहा था कि एक ओर तो वह अपनी कर्मठता के लिए और सामाजिक कार्य के लिए फाउंडेशन और क्षेत्र में सराही जाती है। अपनी बुद्धिमत्ता और साहित्यिक अवदान के लिए पूरे देश और विदेशों ...Read Moreमें जानी जाती है, क्योंकि सोशल मीडिया ने विश्व को जोड़ दिया है। हिंदी के पाठक और साहित्यकार आज विश्व के किस कोने में नहीं! दो-तीन साल पहले जब उसने एक कविता फेसबुक पर पोस्ट की तो इतनी सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ आईं कि उसे अपने वजूद का गहराई से एहसास हो गया। ग्रेट ब्रिटेन से एक प्रोफेसर ने लिखा कि- ये
18 आरती का काम तो बन गया। उसे मुक्ति मिली। अब तो वह मजे से दिन भर नौकरी करती और शाम को शीतल आवाज देता, अजी, आरती जी कहाँ हैं आप! सरपंची तो आपके ही जिम्मे थी ना! नोटीफिकेशन ...Read Moreपर शो होते ही वाट्सएप आॅन कर तुरंत हाजिर हो जाती वह, आरती सरोज कुुंज में! अजी, आती हूँ... रोजी-रोटी से निबट अभी आई हूँ जी... गाड़ी रख पाई हूँ, जी... बैग पटका है, जी... देखो जी, बाहर नहीं कर देना जी, बाहर बहुत ठंड है, जी! तो मुस्तैद सदस्य तुरंत हाजिर हो जाते, नहीं दीदी, आप चिंता न करो,
19 बलौदा बाजार का रास्ता बंद हो गया तो भरत को एक उपाय सूझा। शनिवार को वह रायपुर पहुँच रेश्मा के बोर्डिंग गया। बतौर अभिभावक उसने दरुख्वास्त दी कि बच्ची को सण्डे की छुट्टी में घर ले जाना चाहता ...Read Moreतो सुबह आने के लिए कह दिया गया और वह सुबह कार लेकर फिर उसके बोर्डिंग पहुँच गया। गनीमत थी, अभी आरती ने यहाँ कोई रोक न लगाई थी और न रुकू को कुछ बताया था। इस मामले में वह बहुत पक्की थी। वश भर अपने हादसे किसी को न बताती। भाभी या माँ को उसने आज तक नहीं बताया
20 झंझावातों में उलझे-उलझे दस-ग्यारह बज गए और बच्चा सो गया, तब बेमन से थोड़ा बहुत खाया। फिर शीतल से बात करने और ग्रुप देखने फोन खोला तो, रेश्मा का मिस्ड कॉल मिला। वह सनाका खा गई। तुरंत कॉल ...Read Moreकिया मगर स्विच्ड ऑफ मिला। पेट में जाड़ा भर उठा। जी को लाख समझाया कि यों ही फोन किया होगा। और अब सो रही होगी। होस्टल में रात को फोन बंद करा देते हैं! पर धीरज न बँधा...। उसने शीतल को फोन लगा दिया। पर फोन उठाते ही उसने पूछा, हमारा मैसेज फाॅरवर्ड कर दिया आपने? नहीं, मैसेज तो अभी
21 सुबह उठते ही भरत ने मोबाइल देखा तो होमस्क्रीन पर आरती का एक नया मैसेज झिलमिलाते देख इतना उत्साहित हो गया कि दिल धड़कने लगा। उसे तो उम्मीद ही नहीं बची थी। क्योंकि आरती ने अरसे से उसके ...Read Moreतक चैक नहीं किए थे। चैट बिना देखे क्लीयर करती रही थी। लेकिन उसने अत्यन्त चपल हो उठी अपनी तर्जनी से जैसे ही टच किया, मैसेज खुल गया, जिसे पढ़ कर उसके छक्के छूट गए। फिर वह बौखला गया और उसने आरती को लिखा कि- तमाशा शुरू कर दिया है तो अब तुम इसका असर देखना... इतनी आसानी से नहीं
22 मैसेज भेजने के बाद तीन-चार दिन शांति से कट गए थे। खबर नहीं थी, भीतर ही भीतर इतनी बड़ी खिचड़ी पक रही है! हुआ यह कि जब उसने पूरी तरह नइंयाँ टेक दी और भरत को ब्लाॅक कर ...Read Moreतो वह बुरी तरह घबरा गया। उसे बड़ी ठेस लगती कि जिसने साथ जीने मरने की कसमें खाईं और जो दर्जनों बार अंक शायिनी बनी, उसने इस कदर मुँह मोड़ लिया कि अब उसकी सूरत भी नजर नहीं आती! कहाँ वह रोज भाँति-भाँति के चित्र डालती, अपनी कविताएँ डालती। सच तो यह कि उसे उसकी देह से अधिक उसके शब्दों
23 भान्जा केशव, मामा द्वय को लेकर भोपाल में होशंगाबाद रोड स्थित कुंदन नगर के फेज-2 के 99 नम्बर के मकान पर जब पहुँचा, सुबह के चार बज रहे थे। इतनी जल्दी शहरों में कौन जागता, पर उन्हें कहीं ...Read Moreठौर भी तो न था। बहरहाल, घंटी बजने पर कुत्ते की भौं-भौं के साथ राकेश ने जब गेट खोला, वे तीनों भीगी बिल्ली बने खड़े थे। अपने साढ़ू केशव को वह तुरंत पहचान गया, जिसके अगले ही क्षण में मामा श्री द्वय को भी। अरे- आइये, आइये यकायक उत्फुल्लित हो हाथ पकड़ भीतर ले आया: कहाँ से आना हो रहा
24 सुबह उठी तो लगा, बीमार है। चेहरा मुरझाया हुआ। ऑफिस पहुँच कर भी किसी काम में मन नहीं लगा। जबकि एक प्रोजेक्ट तैयार करना था। अहमदाबाद में ट्रेनिंग होने वाली है। और यहाँ हर्ष को किसके सहारे छोड़ ...Read Moreपुष्पा के पास छोड़े तो पढ़ाई मारी जाए और पुष्पा को यहाँ रखे पंद्रह दिन तो क्षेत्र का काम सफर हो। वो पूरा एक जोन सँभालती है। आरती की अनुपस्थिति में भी प्रोग्रेस निल नहीं होने देती। ऐसे ही मौकों पर लगता है कि कामकाजी और खास कर फील्ड वर्कर उस पर भी सोशल सेक्टर में काम करने वाली महिला
25 लेकिन इतना सब होने के बावजूद भरत का मन उसी में लगा था। फेसबुक, वाट्सएप, से ब्लाॅक वह उससे बात करने, उसकी एक छवि पाने, मेले में खोए बच्चे की तरह घबरा रहा था। कभी कोई साइट देखता, ...Read Moreकोई। लेकिन हर जगह उसकी पुरानी रचनाएँ, पुरानी सूचनाएँ, पुराने फोटो लगे थे। यह मन की उड़ान ही थी कि उसे लग रहा था कि वो अब भी कहीं न कहीं मिल सकती है। इसी खयाल ने रात भर सोने न दिया। सुबह अचानक लगा कि वह नीलिमा के मार्फत् कोशिश कर सकता है। तो उसने नीलिमा की फेसबुक से
26 जबलपुर पहुँच कर आरती का मन कुछ शांत हुआ। क्योंकि यहाँ आकर ही पता चला कि शीतल के कानूनी सलाहकार द्वारा दिलवाए गए नोटिस से सब डरे हुए थे। अब उसे घेरने के लिए कोई कहीं नहीं जा ...Read Moreऔर न समाज की कोई पंचायत जुड़ रही थी। उसने हर्ष को भाभी के पास छोड़ा और भागते-दौड़ते ट्रेन पकड़ी। यों अजमेर वह 16 को शाम चार बजे पहुँची, जबकि शीतल सुबह साढ़े तीन बजे ही पहुँच गया था। वहाँ पहुँच कर उसने अजमेर सिटी होटेल में एक शानदार रूम ले लिया था और पर्याप्त विश्राम कर चुका था। अब
27 (अंतिम भाग) शीतल व्यापारिक जगत का प्राणी था और उसे धन कमाने का इतना चस्का कि इसी कारण उसने शादी न की कि कौन गृहस्थी के झंझट में पड़ेगा। वह कंपनियों के भी शेयर खरीदता-बेचता और सोने-चाँदी के ...Read Moreदिल्ली में बाकायदा उसने अपना ऑफिस बना रखा था, जिसमें छह-सात नियमित कर्मचारी काम करते थे। इस काम में कभी-कभी इतना पैसा आ जाता कि वह कुछ भी खरीद सकता था और किसी की भी मुराद पूरी कर सकता था। लेकिन कई बार लेने के देने पड़ जाते, करोड़ों का कर्ज चढ़ जाता। सब कुछ खरीदा हुआ बिक जाता- कार,