किंबहुना - 13

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13 रायपुर से लौट कर माँ-बेटी एक-एक दिन गिन रही थीं। यों डूबते दिन के साथ निराशा और उगते के साथ आशा बढ़ रही थी। उन्नीसवें दिन भरत ने बताया कि रुकू को लेकर, साथ ही उसके उपयोग का जरूरी सामान भी लेकर कल सुबह आ जाओ। क्योंकि दाखिले के साथ उसे यही छोड़ कर जाना होगा। खुशी का पारावार न रहा। माँ-बेटी खुशी-खुशी तैयारी में लग गईं। मगर दोनों की इस खुशी में जो फर्क था वह यह कि रुकू तो खूब उत्साहित थी, मगर आरती की आँखें भरी-भरी थीं। सुबह ही पुष्पा को बुला कर घर और हर्ष