किंबहुना - 16

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16 जाहिर है, अब आरती की समझ साफ थी और यह परिस्थितियों की देन थी। अनुभव ही प्रत्यक्ष प्रमाण है। उससे बड़ी कोई पाठशाला नहीं। इसी को कहते हैं, बिना मरे स्वर्ग नहीं सूझता! उसने बिना आहत हुए भरत के अनुबंध से अपने आपको मुक्त कर लिया था। अब उसके सामने एक दूसरी ही राह थी। अब वह अपने बलबूते पर ही खुद को और अपनी गृहस्थी को उबारेगी, ऐसा निश्चय कर लिया था। क्योंकि मनुष्य मनस्वी है। उसके पास मन की शक्ति है, तो संकल्प ले सकता है जो निश्चित रूप से कार्य में परिणित हो जाता है। वह