किंबहुना - 18

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18 आरती का काम तो बन गया। उसे मुक्ति मिली। अब तो वह मजे से दिन भर नौकरी करती और शाम को शीतल आवाज देता, अजी, आरती जी कहाँ हैं आप! सरपंची तो आपके ही जिम्मे थी ना! नोटीफिकेशन स्क्रीन पर शो होते ही वाट्सएप आॅन कर तुरंत हाजिर हो जाती वह, आरती सरोज कुुंज में! अजी, आती हूँ... रोजी-रोटी से निबट अभी आई हूँ जी... गाड़ी रख पाई हूँ, जी... बैग पटका है, जी... देखो जी, बाहर नहीं कर देना जी, बाहर बहुत ठंड है, जी! तो मुस्तैद सदस्य तुरंत हाजिर हो जाते, नहीं दीदी, आप चिंता न करो,