एक रूह की आत्मकथा - 17

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लीला पुनीत के स्टूडियो पर पहुँची तो स्टूडियों की भव्यता देखकर चौक पड़ी।वह कोई आम स्टूडियो नहीं था।उसका प्रवेश- द्वार ही कला का अद्भुत नमूना था।द्वार पर द्वारपाल की वेशभूषा में एक आदमी खड़ा था।लीला ने झिझकते हुए पुनीत से मिलने की इच्छा जाहिर की, तो उसने उसे एक बार गौर से देखा और एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर कराकर भीतर जाने को कहा।प्रवेश -द्वार के बाद एक बड़ा -सा कक्ष था।शायद वह प्रतीक्षा -कक्ष था क्योंकि वहां सोफों पर कुछ नवयुवतियाँ अपनी बारी की प्रतीक्षा में थीं।नवयुवतियों ने लीला को देखा तो बड़ी नज़ाकत से मुस्कुराईं।प्रत्युत्तर में लीला भी मुस्कुरा