एक रूह की आत्मकथा - 40

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मैं कामिनी ...मिस कामिनी बहुत खुश हूँ।मेरा हत्यारा पकड़ा गया है और मेरा प्रिय समर बाइज्जत वरी हो गया है।मेरी रूह तड़प रही थी,जब तक वह जेल में था।अब मेरी मुक्ति का समय आ गया है पर मैं अपने प्रिय समर को छोड़कर नहीं जाना चाहती।मेरा मन उसमें ही अटका हुआ है पर सोचती हूँ कि यह तो अच्छी बात नहीं।यह तो सच्चा प्यार नहीं।सच्चा प्यार तो मुक्त करता है ..आजादी देता है।मैं क्यों उसे बाँधना चाहती हूँ?मेरी भौतिक देह अब नहीं रही पर समर की भौतिक देह है।उसे जीवन में आगे बढ़ना चाहिए पर वह मेरी यादों से जकड़ा