झोपड़ी - 9 - अगर तुम साथ हो

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दादाजी और मैंने गांव वालों के साथ मिलकर अपनी शक्ति से बहुत ज्यादा काम कर दिया था। इसलिए हमने कुछ समय आराम करने की सोची। हमने काफी दिनों आराम किया। घूमे- फिरे। इससे हमें काफी रिलैक्स महसूस हुआ। काफी दिनों बाद हम पूरा आराम कर-कर के जब बोर हो गये। मतलब हमने जी भर कर आराम कर लिया, तब हमने कोई और कार्य करने की सोची। एक मेरे रिश्ते के चाचा गांव से बाहर जाकर बस गये थे। उनका घर काफी दिनों से खाली था। यह एक -दो कमरों का घर मुझे बहुत पसंद आया। क्योंकि यह एकांत में था।