श्री विभीषणजी

  • 1.6k
  • 525

सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते। अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम॥* शरणागति के ज्वलन्त उदाहरण श्रीविभीषण जी हैं। ये राक्षस वंश में उत्पन्न होकर भी वैष्णवाग्रगण्य बने । पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा हुए, विश्रवा के सबसे बड़े पुत्र कुबेर हुए, जिन्हें ब्रह्माजीने चतुर्थ प्रजापति बनाया। विश्रवा के एक असुर कन्या से रावण, कुम्भकर्ण और विभीषण—ये तीन पुत्र और हुए। तीनों ने ही घोर तप किया। उनकी उग्र तपस्या देखकर ब्रह्माजी उनके सामने प्रकट हुए। वरदान माँगने को कहा। रावण ने त्रैलोक्य विजयी होने का वरदान माँगा, कुम्भकर्ण ने छः महीने की नींद माँगी। किंतु विभीषण जी ने कुछ भी नहीं माँगा।