भक्तिमती श्री करमैती

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श्रीकरमैतीजी इस घोर कलिकालमें उत्पन्न होकर भी सर्वथा निष्कलंक रही। इन्होंने अपने शरीर के पतिके प्रति नश्वर प्रेमको छोड़कर आत्मा के पति भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र के श्रीचरणोंमें सच्चा प्रेम किया। अपने तर्को के द्वारा सोच-विचारकर संसार के सभी बन्धनों को तोड़ डाला। निर्मल कुल काँथड्या और उनके पिता श्रीपरशुराम जी धन्य हैं, जिन्होंने श्रीकरमैती-सरीखी भक्ता पुत्री को जन्म दिया। सर्वविदित है कि श्रीकरमैतीजी ने घरको छोड़कर श्रीवृन्दावनधाममें निवास किया। सन्तजन इनके त्याग, वैराग्य और भक्ति की बड़ाई करते थे। इन्होंने सांसारिक विषयोंके भोगोंसे प्राप्त होनेवाले सभी सुखों को वमन की तरह त्याग दिया।श्रीकरमैतीजी के विषयमें विशेष विवरण इस प्रकार है— श्रीकरमैतीबाई