श्री सनकादि ऋषि

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सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार और सनत्सुजात—ये पाँचों ही ब्रह्माके मानस पुत्र हैं। कहीं-कहीं सनत्कुमार और सनत्सुजातको एक मानकर चार ही कहा गया है। कहते हैं कि जब ब्रह्मासे पाँच पर्वोवाली अविद्या दूर हो गयी तब ब्रह्माने अपनी शक्तिके साथ निर्मल अन्त:करण होकर इनकी सृष्टि की। ब्राह्मीशक्तिने इन्हें सम्पूर्ण विद्या, उपासना-पद्धति और तत्त्वज्ञानका उपदेश किया। इन सबके अध्ययन, तपस्या, शीलस्वभाव एक-से ही है। इनमें शत्रु, मित्र तथा उदासीनोंके प्रति भेददृष्टि नहीं। सर्वदा पाँच वर्षकी अवस्थावाले बालकोंकी भाँति ही ये विचरते रहते हैं। संसारके द्वन्द्व इनका स्पर्श नहीं कर पाते । रातदिन भगवान् श्रीकृष्णके नामका जप किया करते हैं। ‘हरिः शरणम्’ मन्त्र