अनकही ख्वाहिश

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1. गजलहम पर जो लगाए गए, वो इल्जाम बहुत हैंतुम दूर रहना हमसे, हम बदनाम बहुत हैं गैरों के साथ घूमे वो, कई शाम और शहरअब लौट आए घर, तो कोहराम बहुत हैआओ हुजूर बैठो, महफिल में तुम कभीबहलेगा दिल तुम्हारा, हां इंतजाम बहुत हैउन पर सितारे क्या मढ़े, लगा जहान पा गएहमको तो मिल रहें, जो वो मुकाम बहुत हैं 2. खुद को खुदा समझना तो आखिर, कितना सरल लगता हैऔरों को नीचे गिराना हो तो आखिर, कितना बल लगता हैजिन पर तख्तो ताज के रहम हो, वो ये सब कर सकते हैं हमसे ना होगा काम ये सब