unspoken wish books and stories free download online pdf in Hindi

अनकही ख्वाहिश

1. गजल
हम पर जो लगाए गए, वो इल्जाम बहुत हैं
तुम दूर रहना हमसे, हम बदनाम बहुत हैं

गैरों के साथ घूमे वो, कई शाम और शहर
अब लौट आए घर, तो कोहराम बहुत है

आओ हुजूर बैठो, महफिल में तुम कभी
बहलेगा दिल तुम्हारा, हां इंतजाम बहुत है

उन पर सितारे क्या मढ़े, लगा जहान पा गए
हमको तो मिल रहें, जो वो मुकाम बहुत हैं

2.
खुद को खुदा समझना तो आखिर,
कितना सरल लगता है

औरों को नीचे गिराना हो तो आखिर,
कितना बल लगता है

जिन पर तख्तो ताज के रहम हो,
वो ये सब कर सकते हैं

हमसे ना होगा काम ये सब आखिर,
हमको मुश्किल लगता है

3. बेटियां
बेटियां कुछ लेने नहीं आती है पीहर
बेटियां पीहर आती है अपनी जड़ों को सींचने के लिए
वो तलाशने में आती है परिवार की खुशियां
वो ‌ढूंढने आती है गलियों में अपना सलोना बचपन
वो रखने आती है आंगन में प्रेम स्नेह का दीपक

बेटियां कुछ लेने नहीं आती है पीहर
ताबीज बांधने आती हैं घर के दरवाजे
पर की नजर से बचा रहे घर
वो नहाने आती है ममता के लिए निर्झरिणी में
देने आती हैं अपनों को शुभ आशीर्वाद
बेटियां कुछ लेने नहीं आती है पीहर

बेटियां जब भी पीहर से ससुराल लौटती हैं
वो जाते - जाते थोड़ी बहुत पीहर में ही छूट जाती हैं

4. कविता
*बोलो किस लिए रचाई है ये मेहंदी
*क्या मनचाहा रंग दे पाएगी ये मेंहदी

*मेरे मन को बहुत ही है भाती क्या
*पिया के मन को भाएगी ये मेहंदी

*खुशबू इसकी इस कदर है फैली
*मेरे घर को अब महकाएगी ये मेहंदी

*पेड़ों के तने में पत्तियां गुछी रहती हैं। *पत्थरों पर कम पीसी जाएगी ये मेहंदी

*बारीकियां अच्छी लगने लगी सभी को
*पॉलिथीन में भरकर आएगी ये मेहंदी

5.
दिल की बातों को बस सुनाना है
गीत गजलों में मेरा ठिकाना है

जिक्र पर जिक्र किए जायें जब
इतना काबिल खुद को बनाना है

आंधियों में भी दिए जो जलते हैं
उन दियों की लौ हमें बढ़ाना है

अपने अपनों को ही लगे डंसने
कुछ अपनो को ये बताना हैं

मंजिलें दूर है मगर फिर भी
हमको उनके करीब जाना है

6.
घर-घर में बाजे बधैया गोकुल में जन्मे कन्हैया हो
सुंदर रूप सुहाना की बिरज में छा गए कन्हैया हो

सब सखियां मिल मंगल गाएं
कृष्ण जी को पालना झुलाएं
लोरी सुनाएं यशोदा मैया
की गोकुल में जन्मे कन्हैया हो

काले - काले बादल बरसे
निकलें जब वसुदेव जेल से
हिलोर मचाएं जमुना मैया
की गोकुल में जन्मे कन्हैया हो

7. गजल
तेरे बगैर हमने रातों की वीरानियां लिखी
जब भी लिखी बस तेरी ही कहानियां लिखी

हासिल नहीं कुछ होता देखा है इश्क में
इन आंसुओं पर तेरी ही मेहरबानियां लिखी

जो भी सजाएं दोगे सब मंजूर है हमें
तेरी गलतियों पर तेरी ही नादानियां लिखी

बारिश में भी ना बरसे बादल को क्या कहूं
तपते बदन पर बूंदों की ही शैतानियां लिखी

तू ही बता दे तुझको कुछ खिताब दे दूं क्या
गजलों में लता ने तेरी ही निशानियां लिखी

8.
अभी मोहब्बत में नए - नए हो
अभी वाजिब तुम्हारी बेताबियां हैं

अभी कांटे भी लग रहे होंगे फूल
अभी हर तरफ वादियां ही वादियां हैं

कुछ देर रुको जरा वक्त तो बीतने दो
आहिस्ता - आहिस्ता ही नजर आएगी

मोहब्बत आखिर है ही क्या
बस दो दिलों कि गुस्ताखियां है

9. कविता
*तुमने बना लिया मेरे घर में घर
*कुछ दिन रूकोगी क्या
* रोज सुबह उठकर मेरे आंगन में
*तुम चहकोगी क्या

*तिनका तिनका जोड़ा करती
*मीठे फल को ढूंढा करती
*बिखेर रही हूं दाने मैं कुछ
*तुम इन्हें चुगोगी क्या

*इधर फुदकती उधर फुदकती
*अंबर तक तुम हो छलांगे भरती
*मेरे भी सपने हो जाएं पूरे
*मुझे ऐसे पंख दोगी क्या

*फिर एक दिन काली रात‌ थी आई
*बिल्ली ने ताक झांक लगाई
*बिखर गया तुम्हारा घोंसला
*ढूंढ रही आंखे मेरी तुम ना मिलोगी क्या

10. गजल
जुल्फें अगर खुले तो ये बवाल करती हैं
देखा जो आईने में कुछ सवाल करती हैं

बादल की हो घटा या फिर जुल्फों की हो घटा
बरसे या ना बरसे फिर भी बेहाल करती हैं

दिन भर के काम काज में वो सोए जब अगर
लहरा कर जब जगाएं तो कमाल करती हैं

दरिया की बात करते हो नदियां बिखेर दूं
मिलकर के समुंदर को मालामाल करती हैं

क्या कहती है धड़कन मेरी एक बात तो सुनो
तोड़ा गया लता का दिल मलाल करती है

11.
हाय मेरा हाल जाना किसने था बतला दिया
होंठ थे खामोश लेकिन आंखों ने था बतला दिया

सिलवटें भी कह रही हैं रात गुजरी फिक्र में
अनसुने नगमों ने आकर मुस्कुराना था सिखला दिया

करवटों का हाल ना पूछो धुंधली सी चादर दिखी
ख्वाब पूरे ना हो अगर तो ख्वाबों को था झुठला दिया

रात चुपके से कोई आकर कह रहा था कान में
सुबह होते ही ओस की बूंदों ने मन को था बहला दिया

बात इतनी बस चली थी कौन किसको चाहता है
सो गया जब वो अचानक प्रतिबिंब ने था दहला दिया

मुझसे परियां कह रही थी हम भी हैं तेरे साथ में
खोने सी लगी जब मैं सपनों में सर को था सहला दिया

12. गजल
लगने लगी क्यूं जिंदगी, कश्मीर के जैसी
बनावटी मुस्कुराहटें हैं, तस्वीर के जैसी

खोया बहुत है मैंने, पाया भी कम नहीं
रखना है अब हमें इसे, जागीर के जैसी

उड़ना कभी जो चाहूं, मैं परिंदों की तरह
जकड़ती है मुझको, किसी जंजीर के जैसी

जब सामने हो तुम तो, अनमोल सा समझूं
ओझल जब हो जाओ, लगूं फकीर के जैसी

खुशियों भरे जो पल हैं, सभी बर्फ से लगें
पिघले तो ये लगती है , झील के नीर के जैसी