उलझन - भाग - 17

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बुलबुल के जाने के बाद निर्मला अपने बिस्तर पर लेट कर करवटें बदल रही थी। आज तो उसकी आँखों से नींद कोसों दूर थी। यदि कुछ था तो बेचैनी थी। एक बहुत बड़ी उलझन सामने दिखाई दे रही थी और इस उलझन की गुत्थी को सुलझाना इतना आसान नहीं था। रात के लगभग दो बजे वह उठी और अपनी माँ के कमरे में जाकर उसने धीरे से उन्हें आवाज़ लगाई, “माँ …” आरती ने एक ही आवाज़ में आँखें खोल दी और पूछने के लिए जैसे ही मुँह खोला; निर्मला ने उनका मुँह बंद करते हुए इशारा करके उन्हें अकेले