श्रीकांत - भाग 3

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आज मैं अकेला जाकर मोदी के यहाँ खड़ा हो गया। परिचय पाकर मोदी ने एक छोटा-सा पुराना चिथड़ा बाहर निकाला और गाँठ खोलकर उसमें से दो सोने की बालियाँ और पाँच रुपये निकाले। उन्हें मेरे हाथ में देकर वह बोला, 'बहू ये दो बालियाँ मुझे इकतीस रुपये में बेचकर शाहजी का समस्त ऋण चुकाकर, चली गयी हैं। किन्तु कहाँ गयी हैं सो नहीं मालूम।' इतना कहकर वह किसका कितना ऋण था इसका हिसाब बतलाकर बोला, 'जाते समय बहू के हाथ में कुल साढ़े पाँच आने पैसे थे।' अर्थात् बाईस पैसे लेकर उस निरुपाय निराश्रय स्त्री ने संसार के सुदुर्गम पथ में अकेले यात्रा कर दी है!