Shrikant book and story is written by Sarat Chandra Chattopadhyay in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Shrikant is also popular in Short Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
श्रीकांत - Novels
by Sarat Chandra Chattopadhyay
in
Hindi Short Stories
मेरी सारी जिन्दगी घूमने में ही बीती है। इस घुमक्कड़ जीवन के तीसरे पहर में खड़े होकर, उसके एक अध्याापक को सुनाते हुए, आज मुझे न जाने कितनी बातें याद आ रही हैं। यों घूमते-फिरते ही तो मैं बच्चे से बूढ़ा हुआ हूँ। अपने-पराए सभी के मुँह से अपने सम्बन्ध में केवल 'छि:-छि:' सुनते-सुनते मैं अपनी जिन्दगी को एक बड़ी भारी 'छि:-छि:' के सिवाय और कुछ भी नहीं समझ सका। किन्तु बहुत काल के बाद जब आज मैं कुछ याद और कुछ भूली हुई कहानी की माला गूँथने बैठा हूँ और सोचता हूँ कि जीवन के उस प्रभात में ही क्यों उस सुदीर्घ 'छि:-छि:' की भूमिका अंकित हो गयी थी,
मेरी सारी जिन्दगी घूमने में ही बीती है। इस घुमक्कड़ जीवन के तीसरे पहर में खड़े होकर, उसके एक अध्याापक को सुनाते हुए, आज मुझे न जाने कितनी बातें याद आ रही हैं। यों घूमते-फिरते ही तो मैं बच्चे ...Read Moreबूढ़ा हुआ हूँ। अपने-पराए सभी के मुँह से अपने सम्बन्ध में केवल 'छि:-छि:' सुनते-सुनते मैं अपनी जिन्दगी को एक बड़ी भारी 'छि:-छि:' के सिवाय और कुछ भी नहीं समझ सका। किन्तु बहुत काल के बाद जब आज मैं कुछ याद और कुछ भूली हुई कहानी की माला गूँथने बैठा हूँ और सोचता हूँ कि जीवन के उस प्रभात में ही क्यों उस सुदीर्घ 'छि:-छि:' की भूमिका अंकित हो गयी थी,
पैर उठते ही न थे, फिर भी किसी तरह गंगा के किनारे-किनारे चलकर सवेरे लाल ऑंखें और अत्यन्त सूखा म्लान मुँह लेकर घर पहुँचा। मानो एक समारोह-सा हो उठा। 'यह आया! यह आया!' कहकर सबके सब एक साथ एक ...Read Moreमें इस तरह अभ्यर्थना कर उठे कि मेरा हृत्पिण्ड थम जाने की तैयारी करने लगा।
जतीन करीब-करीब मेरी ही उम्र का था। इसलिए आनन्द भी उसका सबसे प्रचण्ड था। वह कहीं से दौड़ता हुआ आया और 'आ गया श्रीकान्त- यह आ गया, मँझले भइया!' इस प्रकार के उन्मत्त चीत्कार से घर को फाड़ता हुआ मेरे आने की बात घोषित करने लगा और मुहूर्त भर का भी विलम्ब किये बगैर, उसने परम आदर से मेरा हाथ पकड़कर खींचते हुए मुझे बैठकखाने के पायंदाज पर ला खड़ा किया।
आज मैं अकेला जाकर मोदी के यहाँ खड़ा हो गया। परिचय पाकर मोदी ने एक छोटा-सा पुराना चिथड़ा बाहर निकाला और गाँठ खोलकर उसमें से दो सोने की बालियाँ और पाँच रुपये निकाले। उन्हें मेरे हाथ में देकर वह ...Read More'बहू ये दो बालियाँ मुझे इकतीस रुपये में बेचकर शाहजी का समस्त ऋण चुकाकर, चली गयी हैं। किन्तु कहाँ गयी हैं सो नहीं मालूम।' इतना कहकर वह किसका कितना ऋण था इसका हिसाब बतलाकर बोला, 'जाते समय बहू के हाथ में कुल साढ़े पाँच आने पैसे थे।' अर्थात् बाईस पैसे लेकर उस निरुपाय निराश्रय स्त्री ने संसार के सुदुर्गम पथ में अकेले यात्रा कर दी है!
मनुष्य के भीतर की वस्तु को पहिचान कर उसके न्याय-विचार का भार अन्तर्यामी भगवान के ऊपर न छोड़कर मनुष्य जब स्वयं उसे अपने ही ऊपर लेकर कहता है 'मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ, यह कार्य मेरे द्वारा कदापि ...Read Moreहोता, वह काम तो मैं मर जाने पर भी न करता', आदि- तब ये बातें सुनकर मुझे शर्म आए बिना नहीं रहती। और फिर केवल अपने मन के ही सम्बन्ध में नहीं, दूसरों के सम्बन्ध में भी, मैं देखता हूँ, कि मनुष्य के अहंकार का मानो अन्त ही नहीं, है।
इस अभागे जीवन के जिस अध्याय को, उस दिन राजलक्ष्मी के निकट अन्तिम बिदा के समय ऑंखों के जल में समाप्त करके आया था- यह खयाल ही नहीं किया था कि उसके छिन्न सूत्र पुन: जोड़ने के लिए मेरी ...Read Moreहोगी। परन्तु पुकार जब सचमुच हुई, तब समझा कि विस्मय और संकोच चाहे जितना हो, पर इस आह्नान को शिरोधार्य किये बिना काम नहीं चल सकता।
इसीलिए, आज फिर मैं अपने इस भ्रष्ट जीवन की विशृंखलित घटनाओं की सैकड़ों जगह से छिन्न-भिन्न हुई ग्रन्थियों को फिर एक बार बाँधने के लिए प्रवृत्त हो रहा हूँ।