डोर – रिश्तों का बंधन

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ढ़ोलकी की थाप पर जैसे ही गीत शुरु हुआ सुरेश की आंखों के कोर भीग गए। कैसा माहौल होता है बेटी की शादी में। घर में रौनक भी होती है और खुशियाँ भी पर दिल में बेटी की जुदाई का दर्द भी कम नहीं होता। अपने जिगर के टुकड़े को दूसरे घर भेजते समय एक पिता के दिल पर क्या गुज़रती है यह कोई सुरेश से पूछे, जो अपनी पांचवी बेटी की विदाई की तैयारी कर रहा था। पहले से ही चार बेटियों के पिता सुरेश के कंधों पर जब भतीजी नयना की परवरिश का भार आया तो एक बार तो उसके हाथ पांव फूल गए कि अब क्या होगा। उसकी आर्थिक स्थिति तो पहले से ही डावांडोल थी। ऐसे में भाईसाहब का यूं आधे में ही चले जाना उसे तोड़ गया। भाईसाहब की सरपरस्ती में वह ख़ुदको सुरक्षित महसूस करता था, उनके असमय काल का ग्रास बनने से वह अकेला पड़ गया पर उस दुख के समय में 'होनी को कोई नहीं रोक सकता' बस यही सोच कर उसने सब्र कर लिया।

Full Novel

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डोर – रिश्तों का बंधन - 1

(1) साडा चिड़िया दा चंबा वे बाबुल असां उड़ जाना साडी लंबी उडारी वे बाबुल मुड़ नहीं आना' ढ़ोलकी की थाप पर जैसे ही गीत शुरु हुआ सुरेश की आंखों के कोर भीग गए। कैसा माहौल होता है बेटी की शादी में। घर में रौनक भी होती है और खुशियाँ भी पर दिल में बेटी की जुदाई का दर्द भी कम नहीं होता। अपने जिगर के टुकड़े को दूसरे घर भेजते समय एक पिता के दिल पर क्या गुज़रती है यह कोई सुरेश से पूछे, जो अपनी पांचवी बेटी की विदाई की तैयारी कर रहा था। पहले से ही चार बेटियों के पिता स ...Read More

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डोर – रिश्तों का बंधन - 2

2) पीले रंग का टॉप और ब्लू जींस पहन कर नयना तमन्ना के घर पहुंची। गली में उसके घर की ओर मुड़ते ही उसके पैर जम गए। तमन्ना के घर के बाहर लड़कों का एक झुंड खड़ा था। नयना को समझ नहीं आ रहा था वह उन लड़कों के बीच से निकल कर घर के अंदर कैसे जाए। वह असमंजस में थी कि तभी शोभित उस झुंड से बाहर आता हुआ बोला,"अंदर चली जाओ नयना, तमन्ना तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही है।" शोभित ने अपने दोस्तों को एक तरफ हटा कर उसके भीतर जाने का रास्ता बना दिया। शोभित को धन्यवाद दे नयना घर के भीतर चली गई। वह ...Read More

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डोर – रिश्तों का बंधन - 3

3) मोबाइल में बजे अलार्म से नयना तंद्रा टूटी। सुबह हो गई थी। इस बीती रात में उसने अपने जीवन के पिछले कुछ साल फिर से जी लिए, और फिर उन सालों को शोभित की यादों के साथ अपने दिल के एक अंधेरे तहख़ाने में बंद कर दिया। अब वह अपने नये जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार थी। नयना धीरे से दरवाज़ा खोल कर बाहर आई, विवेक के दोस्त जा चुके थे, अब छत पर शांति थी, पर रात को उन लोगों ने जो हुड़दंग मचाया था उसके निशान अब भी यहां वहां बिखरे पड़े थे। पूरी छत पर गंद ...Read More

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डोर – रिश्तों का बंधन - 4

नयना का फ़ोन बहुत देर से बज रहा था। दो बार तो बेचारा थक कर चुप भी हो गया। आटा लगा रही थी,'आज किसे मेरी इतनी याद आ रही है,' उसने देखा फ़ोन की स्क्रीन पर उसकी कलीग रेंवती का नंबर फ्लैश हो रहा था। हैलो, ऐसी कौनसी आफत आ गई की तुम कॉल पर कॉल किए जा रही हो, अभी थोड़ी देर पहले ही तो बिछड़े थे। थोड़ा सब्र भी रख लिया करो, आटा सने हाथों से नयना ने इस बार फ़ोन उठा ही लिया। बात ही ऐसी है। मुझे पता था ना तो तुम्हारे पास फ़ुर्सत है और ना ही तुम्हारी याददाश्त ही इतनी अच्छी है कि जरूरी बातें तुम्हें याद रहे इसलिए सोचा मैं ही बता दूं। जल्दी बको, सच में बिज़ी हूं। खाना बना रही हूं अगर तुम्हारी बातों में उलझ गई तो सब्जी जल जाएगी। ऐसे नहीं मैडम, इतनी बड़ी ख़बर मैं यूं ही नहीं सुनाने वाली। पहले ये बताओ बदले में मुझे क्या मिलेगा। जानती हूं तुम परले दर्जे की कंजूस हो। पर इस बार तुम्हारा पाला रेंवती से पड़ा है, बिना पार्टी लिए मैं तो तुम्हें नहीं छोड़ने वाली। ...Read More

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डोर – रिश्तों का बंधन - 5

नयना के एक बार कहने भर से प्रकाश मोसाजी ने कनाडा जाने वाली टीम में विवेक को शामिल करने सिफारिश ही नहीं की वरन उसका चयन होने के बाद पासपोर्ट, वीज़ा आदि बनवाने में भी उसकी हर तरह की मदद की। विवेक का वीज़ा भी बन गया और टिकट भी आ गया। विवेक तो बहुत उत्साहित था पर जैसे जैसे उसके जाने का दिन पास आ रहा था नयना का दिल बैठा जा रहा था। विवेक का सामान पैक करने की आड़ में वह पूरा पूरा दिन खुद को उलझाए रखती पर कहीं चैन ना पाती। वह जानती थी उसकी इच्छा कोई महत्व नहीं रखती पर फिर भी वह चाहती थी कि विवेक अपना इरादा बदल दे। काश कोई तो हो जो विवेक को कनाडा ना जाने के लिए मना ले। पता नहीं विवेक ने यह कैसी ज़िद पकड़ ली है, डिप्लोमा तो यहां भारत में भी हो सकता है ना उसके लिए अपने परिवार से इतनी दूर परदेस जाने की क्या जरूरत है। ...Read More

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डोर – रिश्तों का बंधन - 6

वह समय नयना के लिए बहुत कठिन था। विवेक से उसकी बात ही नहीं हो पा रही थी, बहुत करती नयना उसका फोन लगाने की पर कुछ दिनों तक तो उसका नंबर व्यस्त आता रहा और फिर नोट रीचेबल आने लगा, शायद उसने अपना नंबर ही बदल लिया था। नयना ने मां से विवेक का नया नंबर इस उम्मीद से मांगा कि मां को तो उसने फोन किया ही होगा पर उन्होंने कोई जवाब ही नहीं दिया। मां पापाजी ने उन दिनों ख़ामोशी की एक अजीब सी चादर ओढ़ ली थी। नयना को यह तो समझ आ रहा था कि कुछ गलत हो रहा है पर क्या यह वह समझ नहीं पा रही थी। हालांकि मां के पास विवेक के फोन आते थे पर अधिकतर उस समय जब नयना घर पर नहीं होती थी। एक रोज़ उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं थी तो वह बैंक से कुछ जल्दी घर आ गई उस समय मां किसी से फोन पर बड़े हंस हंस कर बातें कर रही थी मगर उसे देखते ही उन्होंने फोन रख दिया। ...Read More

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डोर – रिश्तों का बंधन - 7

दो साल होने आए थे नयना को विवेक का घर छोड़े, अब तो वह कानूनी रूप से भी विवेक अलग हो चुकी है। कभी कभी वह सोचने लगती क्या मिला उसे इस शादी से। पांच साल का वैवाहिक जीवन जिसमें खुशी कम और समझौते ज्यादा आए उसके हिस्से और बिना किसी कसूर तलाकशुदा का तमगा। उसका परिवार जरूर इस मुश्किल वक्त में उसके साथ खड़ा रहा पर समाज में ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी जो उसे ही कसूरवार मानते थे। कुछ तो ऐसे भी थे जो सहानुभूति दिखाने की आड़ में उसका दुख कुरेद कर चल देते थे। इस तलाक की कीमत तो विवेक ने भी काफी बड़ी चुकाई थी, उसने ना सिर्फ प्रकाश खारीवालजी का वरद हस्त खोया था, बल्कि नयना की वकील ने नयना के लिए ऐलीमनी के रूप में जिस रकम की मांग की उसे चुकाने में उसकी सारी जमा पूंजी खर्च हो गई। ...Read More

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डोर – रिश्तों का बंधन - 8

सुबह सुबह जैसे बारिश की बूंदों से नयना की नींद खुली। अभी वह पूरी तरह जाग नहीं पाई थी, समझ नहीं आ रहा था कि कमरे में बरसात कैसे आ सकती है, खिड़की भी तो बंद ही है। वह हैरान सी देख रही थी कि एक जानी पहचानी खनकती हुई मर्दाना हंसी उसके कानों में मिश्री सी घोलती चली गई। उसने मुड़ कर देखा, दरवाज़े की ओट में खड़ा वह शैतान पेट पकड़ कर हंसे जा रहा था। चिंटू! नयना चादर फेंक कर उठ खड़ी हुई और दौड़ कर चिंटू के गले लग गई। चिंटू ने भी नयना को कस कर सीने में छुपा लिया जैसे सारी दुनिया की बलाओं से उसे महफूज़ कर लेना चाहता हो। चाची कौन कहेगा आपका बेटा आई.ए.एस अफसर है, हरकतें तो इसकी आज भी बंदरों जैसी हैं। पूरा भिगो दिया मुझे। अच्छा है ना दीदी, कम से कम इस बहाने से तुम नहाई तो सही वरना तो पता नहीं नहाती भी हो या नहीं। ...Read More

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डोर – रिश्तों का बंधन - 9

पूर्वी अपने मम्मी पापा के साथ अपने घर चली गई थी, रिन्नी दीदी तो उन लोगों से पहले ही गई थी बोलीं, 'मां और दीपक भैया दोनों की ही तबीयत खराब है, उन्हें ज्यादा देर अकेले छोड़ना ठीक नहीं।' मेहमानों के जाने के बाद भी वो लोग कई देर तक उनकी ही बातें करते रहे, पूर्वी पहले से ही सबसे हिली मिली थी पर इस बार तो वह अपनी ही हो गई थी, अब तो बस सबके मन में एक ही चाह थी कि जल्दी से उसकी शादी चिंटू के साथ हो जाए और वह हमेशा के लिए उनके परिवार का हिस्सा बन जाए। अगले दिन चिंटू भी दिल्ली चला गया, शादी की तारीख तय हो गई थी और उसके पास छुट्टी बहुत कम थी। चिंटू के जाते ही घर फिर से सूना सूना हो गया था और नयना की पहली सी दिनचर्या भी शुरू हो गई बस फर्क मात्र इतना आया था कि अब वह अक्सर किसी ना किसी बहाने से रिन्नी दीदी के घर भी चली जाया करती थी। ...Read More

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डोर – रिश्तों का बंधन - 10

अगले दिन नयना और चिंटू सुबह सुबह ही पूर्वी की मोसी के घर जनकपुरी पहुंच गए। बस चाय के बिस्कुट ही लिए थे दोनों ने, शनिवार को लीलाधर की छुट्टी रहती है, नयना ने तो बोला भी था ब्रेक फास्ट वह बना लेगी पर चिंटू कहने लगा, 'पूर्वी को भी साथ ले लेते हैं फिर किसी अच्छे से रेस्टोरेंट में ही कुछ खा लेंगे, चल आज तेरी पार्टी करवाता हूं, तू भी क्या याद करेगी कितना दिलदार है तेरा भाई।' पर इसकी तो नौबत ही नहीं आई पूर्वी की मोसी के घर उन दोनों की जम कर खातिरदारी हुई। चिंटू शायद पहले भी यहां आ चुका था इसलिए उसे सब जानते थे। जान तो नयना को भी गए थे जब जया मोसी ने अपनी बहन के समक्ष मां का जिक्र किया, पूर्वी की मोसी नयना के साथ भी बहुत प्रेम और अपनत्व से भरा व्यवहार कर रही थीं उनके पास भी नयना के बचपन की ढेरों बातें थीं जिन्हें सुन कर चिंटू पेट पकड़ कर हंस रहा था, पर नयना को उन मोसीजी से जुड़ी एक भी बात याद नहीं आ रही थी शायद इसीलिए वह उनके साथ उस तरह की नज़दीकी महसूस नहीं कर पा रही थी जितनी जया मोसी के साथ करती आई थी। खूब अच्छे से पेट भर नाश्ता कर वो लोग पूर्वी को साथ ले बाजार निकल गए। ...Read More

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डोर – रिश्तों का बंधन - 11 - अंतिम भाग

धीरे धीरे वक्त के साथ बहुत कुछ बदला नयना के जीवन में, मां अब पहले से थोड़ी कमज़ोर हो थीं और जोड़ों के दर्द से परेशान भी रहने लगीं थीं। सोनू बी. टेक. के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चला गया और फिर वहीं कंपनी प्लेसमेंट में एक मल्टी नेशनल कंपनी में उसकी जॉब लग गई। उसके अमेरिका जाने के बाद प्रकाश मोसाजी और जया मोसी भी रिटायरमेंट के बाद यहीं आ गए थे। चिंटू और पूर्वी जब भी मिलने आते दोनों परिवारों में रौनक हो जाती, अब तो उनके पास एक छोटा सा गोलमटोल खिलौना निशू भी था जो अपनी मासूम बातों और शरारतों से सबका मन मोह लेता था। अब दोनों घरों के आंगन को चिंटू-पूर्वी से भी अधिक निशू का इंतज़ार रहता था, जब भी वह आता सबकी आंखों के समक्ष चिंटूऔर पूर्वी का बचपन एक बार फिर साकार हो उठता और सब उसके खूब लाड चाव करते। ...Read More