रिश्ते -ज़रूरत या ईश्वरीय देन

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बहुत दिनो से सोच रहा था कि आज कल के रिश्तों में वो बात क्यूँ नहीं हैं जिस रिश्तों की कहानी मैं अपने पापा माँ या फिर दादादादी से सुनता था ...क्यों अब लोगों की रिश्ते निभाने की चाह समाप्त होने लगी है और धीरे धीरे एकलता की और बढ़ रहे है ।सच कहु तो एसा लगता है जैसे इंसानो ने इलेक्ट्रॉनिक्स साधनो से एक नई रिश्तों की शुरुआत किया है। ऐसा क्या हो गया है कि अब रिश्तों का महत्व कम हो गया है या कहूँ तो आने वाले समय में समाप्त ही न हो जाये?!!! रिश्तों की शुरुआत

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रिश्ते -ज़रूरत या ईश्वरीय देन

बहुत दिनो से सोच रहा था कि आज कल के रिश्तों में वो बात क्यूँ नहीं हैं जिस रिश्तों कहानी मैं अपने पापा माँ या फिर दादादादी से सुनता था ...क्यों अब लोगों की रिश्ते निभाने की चाह समाप्त होने लगी है और धीरे धीरे एकलता की और बढ़ रहे है ।सच कहु तो एसा लगता है जैसे इंसानो ने इलेक्ट्रॉनिक्स साधनो से एक नई रिश्तों की शुरुआत किया है। ऐसा क्या हो गया है कि अब रिश्तों का महत्व कम हो गया है या कहूँ तो आने वाले समय में समाप्त ही न हो जाये?!!! रिश्तों की शुरुआत ...Read More

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रिश्ते - ज़रूरत या ईश्वरीय देन (भाग-२)

हमने भाग-१ में देखा कि रिश्तों का जन्म कैसे हुआ और किन परिस्थितियों में हुआ?अब हम रिश्तों के अलग को देखने का प्रयास करेंगे।आज कल के रिश्ते बस नाममात्र के ही प्रतीक रहे है ।हर वो रिश्ता चाहे फिर ख़ून से जुड़ा हो या फिर विश्वास से या फिर प्रेम से बस दिखावा मात्र रह गये है । हमने समझने की कोशिश की कि रिश्ता कैसे जन्मा होगा? अब इसका धार्मिक पक्ष समझने की कोशिश करते है - जब ईश्वर ने इस धरती का सृजन किया तो इसकी सबसे अदभुत सर्जन मानव था ।ईश्वर ने मानव को समझ जिसे हम ...Read More