मेरी मीरा...

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हर किसी के जिंदगी में अपने को खोना बोहत मुश्किल होता है, और अगर हमसफर राह में अकेला छोड़ जाए तो सासें भी घुटन जैसी लगने लगती है। मीरा और मयंक, एक सिंपल कपल जो अपने हमसफर के लिए बने थे। यह कहानी को आप मैं कोई भी जी सकता है, बस शर्त इतनी है कि इस किरदार को जीना बोहत मुश्किल होगा, क्यों को अपने ही आंखो के सामने अपनी मोहब्बत को मरते देखना कितना मुश्किल होगा यह आप सोच कर देखिएगा। (परिचय – इस कहानी को 2 पार्ट में लिख रहा हु, पहले पार्ट में कैसे मयंक जी रहा है मीरा के बिना, दूसरे पार्ट में आखिर क्यों मीरा ने छुपाया की उसे कैंसर था) हम दोनो को मिले १२ साल हो गए है, और मैं आज उसके साथ नही हु क्यों की उसने बोहत जल्दी मेरा हाथ छोड़ दिया । २ साल पहले उसको कैंसर हुआ था हमने बोहत कोशिश की उसको बचाने के लिए। उसने जाने से पहले कहा था, " मेरे जाने के बाद दूसरी शादी कर लेना ", ऐसे थोडी होता है, जाना था मुझसे दूर तो चली गई बिना परमिशन के अब मैं कैसे भी जीवू उसको क्या ही फरक पढ़ेगा।

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मेरी मीरा... - 1

मेरी मीरा... पार्ट 1हर किसी के जिंदगी में अपने को खोना बोहत मुश्किल होता है, और अगर हमसफर राह अकेला छोड़ जाए तो सासें भी घुटन जैसी लगने लगती है। मीरा और मयंक, एक सिंपल कपल जो अपने हमसफर के लिए बने थे। यह कहानी को आप मैं कोई भी जी सकता है, बस शर्त इतनी है कि इस किरदार को जीना बोहत मुश्किल होगा, क्यों को अपने ही आंखो के सामने अपनी मोहब्बत को मरते देखना कितना मुश्किल होगा यह आप सोच कर देखिएगा।(परिचय – इस कहानी को 2 पार्ट में लिख रहा हु, पहले पार्ट में कैसे ...Read More