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हे भगवान

हे भगवान

अन्नदा पाटनी

नई दिल्ली स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म पर गाड़ी खड़ी थी । खिड़की की तरफ़ एक बीस-बाईस साल का नौजवान बैठा था। खिड़की के बाहर से उस लड़के की माँ उदास खड़ी थी और रुक रुक कर हिदायतें दिए जा रही थी। "गाड़ी चलने लगे तो उतरना मत । खिड़की से सिर बाहर मत निकालना । फल रखे हैं खा लेना, अपना सामान छोड़ कर इधर-उधर मत चल देना ।"जैसे जैसे माँ के उपदेश चल रहे थे, उस नौजवान के चेहरे पर खीज बढ़ती जा रही थी । "हाँ हाँ, अच्छा बाबा अच्छा, ठीक है ठीक है " कह कर मना रहा था कि गाड़ी चल दे । पर माँ तो मां थी । ट्रेन के चलते चलते भी कुछ न कुछ निर्देश दिए जा रही थी । लड़का खिसियाये जा रहा था ।

ट्रेन के चलते ही उस लड़के ने हम लोगों की ओर देखा । मुझे मुस्कुराता देख बोला," आपको हँसी आ रही है न ? मेरी माँ पर न, वह है ही ऐसी ।"

"अरे ! मैं तुम्हारी माँ पर क्यों हँसूँगी । "

"क्योंकि वह अभी भी मुझे बच्चा समझती है और आप यह देख कर मज़ा ले रहीं हैं ।"

मन हुआ उसे डाँट दूँ पर रोक लिया और बोली,"मैं तो ख़ुद एक मां हूँ और अगर मैं तुम्हारी मां की जगह होती तो मैं भी उन्हीं की तरह हिदायतें देती । बच्चे चाहे कितने भी बड़े हो जांय,माँ के लिए तो हमेशा बच्चे ही रहते हैं । तुमने ऐसा सोचा भी कैसे कि मैं तुम्हारी माँ का मज़ाक़ बना रही हूँ ।"

वह कंधे मचका कर कहीं चल दिया । सोचा आता ही होगा । आठ बज रहे थे । आॉर्डर का खाना भी आ गया । बेयरे ने लड़के के लिए पूछा पर जवाब न पाकर वहीं बर्थ पर खाना रख कर चला गया । माँ की सारी हिदायतें मानो ताक पर रख दी गईं थीं । मैंने सोचा अपने सामान की जाँच के लिए जब आयेगा तब उस से कहूँगी कि वह नीचे वाली अपनी सीट मुझे दे दे क्योंकि मेरे लिए ऊपर की सीट पर चढ़ना मुश्किल था ।

रात के ग्यारह बज रहे थे पर उस नौजवान का पता नहीं था । मुझे नींद आ रही थी । मैंने अपना बिस्तर उसकी सीट पर लगा दिया कि उसे इसमें क्या ऐतराज़ होगा । बिस्तर पर पड़ते ही थकान के कारण जल्दी ही आँख लग गई । थोड़ी देर बाद लगा कि कोई आवाज़ दे रहा है "आंटी आंटी ।" होगा कोई, ध्यान नहीं दिया । जब लगा कोई छू कर कह रहा है," आंटी आंटी ।" ओह! वही लड़का मुझे पुकार रहा था । मैंने खीजते हुए पूछा, "क्या है?" बोला ," उठिए, यह सीट मेरी है ।" मैंने कहा," हाँ बेटा, जानती हूँ पर मैं ऊपर नहीं चढ़ सकती । प्लीज़ तुम मेरी सीट पर चले जाओ ।"

वह बोला," नहीं, नहीं, मैं तो अपनी सीट पर ही सोऊँगा । मेरा सामान नीचे पड़ा है । माँ ने कहा था कि सामान के पास ही रहना ।"

मुझे ग़ुस्सा आ रहा था और मन ही मन हँसी भी आ रही थी कि जैसे अब तक वही कर रहा था न जो माँ ने कहा था ।

पटठा कब से नदारद था तब माँ की बात याद नहीं आई । बल्कि सब उस से उल्टा कर रहा था जो माँ ने करने को कहा था । अन्य लोगों ने भी समझाया कि नौजवान हो, क्यों अड रहे हो । पर वह टस से मस नहीं हुआ । शराब की दुर्गन्ध भी आ रही थी । मरती क्या न करती,हार कर उठना ही पड़ा । एकअन्य सज्जन ने मुझे अपनी सीट दी । पर मेरी तो नींद ही उड गई ।

यह है हमारी भावीं नई पीढ़ी । सबको बड़ी उम्मीदें हैं कि देश का ये भार उठायेंगे । देश को सहारा देंगे और ऊँचाइयों तक ले जायेंगे । वाह बहुत अच्छे । ये एक वृद्धा को तो सहारा नहीं दे पा रहे,ट्रेन की ऊँची बर्थ पर तक तो चढ़ नहीं पा रहे, ये देश के लिए क्या करेंगे समझना मुश्किल नहीं है ।

सुबह हो गई, सब उठ बैठे तो उस नौजवान को उठने को कहा । तमक कर बोला,"क्या शोर मचा रखा है ? सोने दो ।"

" सुबह हो गई है,हम ऊपर कब तक लटके बैठे रहेंगे । उठो फटाफट ।" ऊपर की बर्थ पर बैठे सज्जन ने फटकार लगाई ।

वह उठ तो गया पर बड़बड़ाया कि शरम नहीं आती, सोते हुए को डिस्टर्ब्ड करते हुए ।

चेहरे पर बारह बज रहे थे, सूजी हुई आंखें, लंबे उलझे हुए बाल, क्या नमूना लग रहा था । तभी जेब से सिगरेट निकाली और लाइटर से जला ली । जैसे ही उसने कश खींचा कि विरोध हुआ । "यह क्या तरीक़ा है, सिगरेट पीनी है तो कहीं और जाकर पिओ । "

"क्यों, यहाँ क्यों नहीं पी सकता । मेरी सिगरेट, मेरा लाइटर, मेरी सीट आप लोगों को क्या प्रॉब्लम है। "

एक सज्जन खाँसते हुए बोले " प्रॉब्लम है। दिखाई नहीं दे रहा कि खाँसी उठ रही है और इसकी गंध से सबको परेशानी हो रही है । लिखा भी तो है कि धूम्रपान करना मना है । "

"लिखने की बात जाने दीजिए। लिखा तो बहुत जगह, बहुत कुछ होता है पर क्या होता है उस से । जहाँ लिखा होता है कि यहाँ पेशाब करना मना है, वहीं लोग पेशाब करते दिखेंगे । लिखते हैं यहाँ थूकना मना है, ठेट उसी जगह पान की पीकों से रंगी चित्रकारी मिलेगी । अरे, आप लोग किसे बेवक़ूफ़ बना रहें हैं । टाँग अड़ाने की आदत ही पड़ गई है आप सब उम्र वालों को । चुपचाप बैठे रहिए, अपने काम से काम रखिए ।"

मुझे लगा कि अब द्वन्द युद्ध शुरू हुआ पर अच्छा लगा कि बिना आपा खोए एक व्यक्ति ने बात संभाल ली, बोले,

"अरे बेटा, हम तो तुम्हें समझा रहे थे कि पहले थोड़ा हाथ मुँह धोकर फ़्रेश हो जाते, फिर कुछ खा लेते । "

"आप बुज़ुर्गों की प्रॉबल्म पता है क्या है । आप लोगों को जो रेस्पेक्ट दी जाती है,उसका आप मिसयूज़ यानी दुरुपयोग करते हैं ।मैं अभी कुछ दिन पहले पूजा बेदी का एक लेख पढ़ रहा था । उसने भी यही लिखा था कि हिंदुस्तान की यह बहुत बड़ी प्रॉब्लम है कि हमारे बुज़ुर्ग अपने बड़े होने का नाजायज़ फ़ायदा उठाते हैं । " वह लड़का बोला ।

तभी सामने बैठी एक आधुनिक प्रौढ़ महिला बोलीं," किस पूजा बेदी की बात कर रहे हो, वही न जो कबीर बेदी और प्रौतिमा बेदी की लड़की है?"

" हाँ, हाँ उसी पूजा बेदी की बात कर रहा हूँ । पिता कबीर बेदी सिने कलाकार हैं और माँ प्रसिद्ध डांसर थी ।" वह लड़का तपाक से बोला । उसके स्वर में उत्साह झलक रहा था कि देखो मैंने कितनी बुद्धिमानी की बात कही है ।

वह महिला बोली," वाह बेटे वाह ! उदाहरण भी दे रहे तो किसका । उस पूजा बेदी का जिसके माँ-बाप का संबंध-विच्छेद हो चुका है । न जाने कितने और संबंध बनाए पर फिर भी स्थिरता का नाम नहीं । स्वयं पूजा बेदी भी तलाकशुदा होकर न जाने कहाँ कहाँ ख़ुशियाँ ढूँढती फिर रही है । जिसने संबंधों का स्थायित्व नहीं देखा न पारिवारिक मूल्यों को समझ पाई, उस पूजा बेदी का उदाहरण दे रहे हो । उसे अपना आदर्श बना रहे हो ? उसे तो कोई अधिकार ही नहीं है, इस प्रकार की टिप्पणी करने का और न तुम्हें उसका नाम लेना का । "

वह लड़का खिसिया सा गया । सोचा तो होगा कि इन्हें ग़ुस्सा दिला कर और बुरा भला कह कर निबट लेगा पर हुआ इस से विपरीत । अपनी सीट पर से उठा और यह कहता हुआ वहाँ से सटक लिया कि," अपने आपको बहुत बुद्धिमान समझते हो पर समय के साथ बदलना नहीं सीख पाए । पता नहीं ज़िंदगी कैसे गुज़ारोगे ।"

बेटे हमारी ज़िंदगी तो गुज़रने को आई और जितनी गुज़री,बढ़िया गुज़री । तुम्हारी तो पूरी सामने है । इस तरह की मानसिकता लिए घूमोगे तो घूमते ही रह जाओगे । ख़ुशियाँ ढूँढोगे तो ढूँढते ही रह जाओगे ।

बार बार उस नौजवान की माँ का चेहरा सामने आ रहा था जो यह सोच कर घबरा रही थी कि उसका बेटा बहुत भोला है, नादान है । कोई बेचारे को बेवक़ूफ़ न बना दे । कोई उल्लू बना कर लूट न ले । बेचारी ताक़ीद पर ताक़ीद दिए जा रही थी । उसे क्या पता था कि जिस राह पर वह अपने बेटे को चलाना चाह रही थी वह उस से बिल्कुल उल्टी दिशा में जा रहा है ।

ईश्वर से प्रार्थना करती रही और मनाती रही कि हे भगवान ! इस रेलगाड़ी की तरह ही इन बच्चों की रेलगाड़ी पटरी पर चलती रहे, कभी पटरी से न उतरे ।

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