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अगर तुम ना होते

अगर तुम ना होते

लेखक :- आशीष कुमार त्रिवेदी

डिनर के बाद सुधीर स्टडी में चला गया. एक महत्वपूर्ण केस उनकी वकालत फर्म को लड़ने के लिए मिला था. उसकी तैयारी के लिए आज देर रात तक काम करना था. कुछ देर बाद अवनि स्टडी में आई. चुपचाप कॉफी का मग रख कर जाने लगी.

"अवनि ज़रा ठहरना." सुधीर ने पीछे से आवाज़ दी.

जाते हुए अवनि ठिठक गई. सुधीर की तरफ देख कर बोली "क्या हुआ."

उसके इस तरह चौंक जाने से सुधीर उसे तसल्ली देते हुए बोला "कुछ नहीं, कुछ देर यहाँ बैठो."

अवनि उसके पास जाकर बैठ गई. उसकी आँखों में अभी भी प्रश्न था. सुधीर ने फाइल बंद करके रख दी. उसका हाथ अपने हाथ में लेकर उसने प्यार से पूँछा "कोई परेशानी है."

"नहीं, कोई परेशानी नहीं है. आपने यह सवाल क्यों किया."

"मैंने महसूस किया है. आजकल तुम बहुत खामोश रहती हो. पहले तो कभी इतनी चुप नहीं रहती थी."

"वो कुछ थकावट सी रहती है." अवनि ने सफाई दी.

"तभी तो कहता हूँ कि इतना काम मत किया करो. मैं तो व्यस्तता के कारण तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता. तुम कोई मेड क्यों नहीं रख लेती हो."

"परेशान होने की आवश्यक्ता नहीं है. कुछ दिनों में ठीक हो जाऊंगी."

"ठीक है तुम देख लो. मुझे तो बस तुम्हारी फ़िक्र है. वैसे मैं ब्लैक कॉफी पीता हूँ."

अवनि को अपनी गलती समझ में आ गई. वह क्षमा भाव से उसकी ओर देखने लगी.

सुधीर उसके सर पर हाथ फेर कर बोला "कोई बड़ी बात नहीं है. मैं शिकायत नहीं कर रहा. बस बताना चाहता था कि तुम बहुत परेशान हो."

अवनि अपने कमरे में आ गई. चार साल का सुयश सो रहा था. उसने प्यार से उसका माथा चूमा. सही तरह से चादर ओढ़ाई फिर उसके पास बैठ गई. उसके मन में विचारों का एक तूफान सा उमड़ रहा था. सुधीर ने उसे कितना मान और प्यार दिया था. कभी किसी भी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी. वरना जिस मानसिक स्थिति में वह थी मर्दों पर से उसका यकीन पूरी तरह से डगमगा गया था. उसने तय कर लिया था कि वह अपने जीवन में दोबारा किसी पुरुष को प्रवेश नहीं करने देगी. चाहे उसे कितनी भी समस्याओं का सामना क्यों ना करना पड़े. परंतु माता पिता उसके इस फैसले के खिलाफ थे. वह हर तरह से उसे विवाह के लिए मना लेना चाहते थे.

अवनि उन दिनों को याद करने लगी.

"अकेले जीवन बिता पाना इतना आसान नहीं है. यह बेकार की ज़िद छोड़ो. लड़का सचमुच बहुत भला है." उसकी माँ ने समझाते हुए कहा.

"एक बार की चोट बहुत है मेरे लिए. अब मैं किसी भी पुरुष पर भरोसा नहीं कर सकती हूँ."

इस बहस में उसके पिता भी शामिल हो गए "क्या सब मर्द एक जैसे होते हैं. तुम्हारे बहनोई भी तो हैं. कितनी खुश है धरा उनके साथ. फिर मैं भी हूँ. तुम्हें क्या लगता है मैंने तुम्हारी माँ को सिर्फ दुख तकलीफें ही दी हैं."

"ऐसा नहीं है पापा किंतु मैं अभी इस स्थिति में नहीं हूँ." अवनि परेशान होकर बोली.

"यह जरूरी तो नहीं कि हर बार बुरा ही हो. हम तो तुम्हारे भले के लिए कह रहे हैं. बिना साथी के जीना बहुत मुश्किल है. बिना विचार किए कोई फैसला मत करो." उसकी माँ ने अनुरोध किया.

पिता ने बात को आगे बढ़ाया "हम तुम पर कोई दबाव नहीं डालना चाहते. पर एक बार उससे मिल लो फिर तुम जो चाहो फैसला करना."

"ठीक है लेकिन उसके बाद आप लोग कभी भी यह विषय नहीं उठाएंगे."

अवनि ने पहलेे ही तय कर लिया था कि वह रिश्ते से इंकार कर देगी. मुलाकात वाली बात तो उसने हमेशा के लिए यह विषय समाप्त करने के लिए स्वीकार की थी. वह सोंचती थी कि वह अपने पैरों पर खड़ी है. अपने फैसले ले सकती है. ठीक है कि उससे एक भूल हो गई. लेकिन अब वह उस भूल को दोहराएगी नहीं. वह इसी सोंच के साथ सुधीर से मिलने गई थी.

दोनों शहर के एक मशहूर रेस्त्रां में मिले. देखने में वह अवनि को स्मार्ट लगा. बातें भी बहुत सलीके से कर रहा था. अवनि मन ही मन सोंच रही थी 'यह सब तो महज़ दिखावा है. असली रंग तो बाद में दिखेगा.'

सुधीर बातें करते हुए कुछ नर्वस सा लग रहा था. दोनों यूं आम सी बातें कर रहे थे.

"मेरा हाथ छोड़ो." पास की टेबल पर बैठी लड़की अचानक चिल्ला उठी. सभी उस तरफ देखने लगे. उस लड़की के साथ बैठे लड़के ने उसका हाथ पकड़ रखा था. वह अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर रही थी. कोई उसकी मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहा था. तभी सुधीर तेजी से उठा और उस लड़के के पास जाकर खड़ा हो गया. उसने गंभीर आदेशात्मक लहजे में कहा "हाथ छोड़ो."

"देखिए मिस्टर आप अपने काम से मतलब रखिए. यह हमारा आपसी मामला है." उस लड़के ने धमकाने के अंदाज़ में कहा.

"यह पब्लिक प्लेस है. तमाशा मत करो. लड़की का हाथ छोड़ो."

बात को अनसुना करते हुए उस लड़के ने सुधीर को परे धकेलने का प्रयास किया. सुधीर ने उसका कॉलर पकड़ कर ज़ोरदार तमाचा रसीद कर दिया. लड़के ने हड़बड़ा कर हाथ छोड़ दिया. लड़की उसे धन्यवाद देकर रेस्त्रां से चली गई. सभी ने ताली बजा कर सुधीर का स्वागत किया.

अवनि को सुधीर का इस तरह उस लड़की की सहायता करना बहुत अच्छा लगा. सुधीर ने उसे घर छोड़ने की पेशकश की जिसे उसने स्वीकार कर लिया.

घर वापस लौट कर उसने अपने माता पिता के सवालों को यह कह कर टाल दिया कि कल बात करेगी. अपने कमरे में आकर वह आज की घटना के बारे में सोंचने लगी. सुधीर उसे बनावटी इंसान बिल्कुल भी नहीं लगा. सिर्फ उसे प्रभावित करने के लिए उसने ऐसा नहीं किया था. उस लड़के की बद्तमीज़ी पर उसे वाकई बहुत गुस्सा आया था. लड़की की परेशानी देख कर ही वह उसकी सहायता करने गया था. पुरुषों के बारे में उसके मन में जो विचार बन गए थे वह वैसा बिल्कुल नहीं था. भला एक अन्जान लड़की के लिए कौन झगड़ा मोल लेता है. वहाँ और भी तो लोग थे. कोई भी मदद करने के लिए नहीं उठा.

उसने भी कभी अकेले जीवन बिताने की नहीं सोंची थी. एक स्त्री की तरह उसके मन में भी एक हंसते खेलते परिवार की इच्छा थी. यह तो उसके पिछले अनुभव की कड़वाहट थी जिसके कारण उसने.शादी ना करने का फैसला किया था. लेकिन आज सुधीर से मिल कर उसकी वह कड़वाहट बहुत हद तक कम हो गई थी.

अवनि जानती थी कि कल मम्मी पापा उससे उसके निर्णय के बारे में अवश्य पूंछेंगे. वह और गहराई से इस विषय पर विचार करने लगी. यह ठीक था कि अकेले जीवन बिताने के लिए वह पूरी तरह सक्षम थी. पर किसी का साथ हो तो जीवन की डगर सुगम हो जाती है. जीवन का आनंद बढ़ जाता है. सारी रात वह इस विषय पर सोंचती रही.

अगली सुबह ब्रेकफास्ट टेबल पर उसके पापा ने उससे पूंछा "तो क्या सोंचा तुमने. क्या जवाब दूं सुधीर के परिवार को."

टोस्ट पर मक्खन लगाते हुए उसने हाँ कर दी. उसकी रज़ामंदी की खबर सुनकर उसके मम्मी पापा बहुत खुश हुए. एक महीने में ही सुधीर और उसका विवाह हो गया.

सोते हुए सुयश कुनमुनाने लगा. अवनि के विचारों की श्रृंखला टूट गई. उसने थपकी देकर उसे फिर सुला दिया. एक बार फिर वह पुरानी यादों में डूब गई.

सुधीर अपने मित्र के साथ एक लॉ फर्म में साझेदार था. उसकी कमाई अच्छी थी. फिर भी उसने अवनि से कहा कि वह अपनी नौकरी ना छोड़े. उसका कहना था कि स्त्री को भी आर्थिक रूप से स्वावलंबी होना चाहिए. वह उसे केवल आर्थिक रुप से सक्षम बनने के लिए ही नहीं कहता था बल्कि उसे अपनी अलग पहचान बनाने के लिए भी प्रेरित करता था. उसके प्रेम और उत्साहवर्धन ने अवनि के भीतर बची खुची कड़वाहट को भी मिटा दिया था. सुयश के जन्म से उसका घर संसार पूर्ण हो गया.

अवनि ने ज़िंदगी की किताब के उस भयानक अध्याय को फाड़ कर फेंक दिया था. वह अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट थी. करीब एक महीने पहले उसकी एक कुलीग ने अपनी शादी के संगीत समारोह में उसे आमंत्रित किया. उसके इसरार करने पर वह समारोह में शामिल होने के लिए गई.

गीत संगीत के उस माहौल में उसे बहुत आनंद आ रहा था. वह सुयश को घर छोड़ कर आई थी. इसलिए हालचाल लेने के लिए उसने घर फोन किया. हॉल में बहुत शोर था इसलिए वह बाहर आ गई. बात ख़त्म करके वह अंदर जा रही थी कि तभी किसी ने पीछे से आवाज़ दी. उसने पीछे मुड़ कर देखा तो दंग रह गई. अतीत का काला साया सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था. उसके मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा "रॉकी".

"अभी भूली नहीं तुम मुझे. भूलोगी भी कैसे मैं तुम्हारा पहला प्यार जो हूँ." वह बेशर्मी से बोला.

"वह मेरी ज़िंदगी की सबसे बड़ी भूल थी." अवनि ने नफरत से कहा.

"पर उस भूल में मुझे तो बड़ा मज़ा आया." रॉकी ने एक आँख दबाते हुए कहा.

अवनि फौरन ही वहाँ से चली आई. अगले दिन उसकी कुलीग से पूंछताछ की तो पता चला कि वह उसके मंगेतर का कज़िन था. उस दिन से अवनि परेशान रहने लगी थी. वह यह सोंच कर डर जाती थी कि कहीं रॉकी उसके खुशहाल जीवन में आग ना लगा दे. हलांकि उस दिन के बाद वह उसे दिखाई नहीं पड़ा था.

अवनि की नज़र घड़ी पर गई तो रात के एक बज रहे थे. वह उठ कर स्टडी में गई तो सुधीर अभी भी काम कर रहा था.

"अभी कितनी देर और काम करेंगे. बहुत देर हो गई है. अब चलकर सो जाइए."

सुधीर काम करते हुए बोला "तुम भी तो नहीं सोईं अभी तक."

"मैं तौ आपको बुलाने आई थी."

"तुम चलो मैं बस पाँच मिनट में आता हूँ." सुधीर लैपटॉप बंद करते हुए बोला.

अवनि अपने ऑफिस से कुछ देर पहले ही लौट कर आई थी. सुयश उसकी गोद से उतरने को तैयार ही नहीं था. अवनि का फोन बज रहा था. उसने सुयश को बहला कर नीचे उतारा और फोन की तरफ बढ़ी. कोई नया नंबर था. उसने कॉल रिसीव कर लिया.

"हैलो, पहचाना." उधर से आती आवाज़ सुन कर उसका कलेजा धक् से रह गया. वह रॉकी था.

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई यहाँ फोन करने की." स्वयं को संयत करती हुई अवनि बोली.

"यह सब छोड़ो. मुझे तुमसे मिलना है."

"मैं तुमसे मिलना नहीं चाहती. दोबारा फोन मत करना."

"इस बार फोन नहीं करूँगा. खुद ही आऊंगा."

उसकी धमकी सुनते ही अवनि के पैरों तले जमीन खिसक गई.घबरा कर बोली "नहीं तुम यहाँ मत आना. बताओ कहाँ मिलना है."

"मैं मैसेज करके बताता हूँ" कह कर उसने फोन काट दिया.

अवनि धम्म से सोफे पर गिर पड़ी. उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था. सुयश दोबारा गोद में बैठने की ज़िद कर रहा था. पहले से परेशान अवनि झल्ला उठी और उसने सुयश को थप्पड़ मार दिया. सुयश ज़ोर ज़ोर से रोने लगा. उसके रोने की आवाज़ सुन कर अवनि जैसे होश में आई. उसे गोद में उठा कर पुचकारने लगी. उसे अपनी इस हरकत पर अफसोस हो रहा था. वह सुयश को चुप कराने की कोशिश कर रही थी. रोते रोते सुयश सो गया.

सुधीर केस के सिलसिले में बाहर गया था. उसे लौटने में देर होने वाली थी. अवनि परेशान थी कि क्या करे. अनेक विचार उसके मन में आ रहे थे. आखिर रॉकी उससे क्यों मिलना चाहता है. क्या अतीत की कोई चीज़ उसके पास है जिसके ज़रिए वह उसे ब्लैकमेल करना चाहता है. वह ज़रूर पैसे चाहता होगा. उसके पास अपनी जितनी भी पूंजी है वह सब उसे दे देगी. किंतु किसी भी कीमत पर अपने अतीत का साया वह सुधीर पर नहीं पड़ने देगी.

उसका अतीत उसकी नज़रों के सामने घूमने लगा. वह एम.बी.ए कर रही थी. रॉकी उसकी क्लास में ही था. किशोरावस्था में पढ़े रोमांटिक उपन्यास और फिल्मों के माध्यम से प्रिंस चार्मिंग की जो छवि उसके मन में बनी थी रॉकी बिल्कुल वैसा ही था. देखने में बहुत आकर्षक था. उसकी लच्छेदार बातों पर कॉलेज की कई लड़कियां फिदा थीं. वह भी उनमें से एक थी. वह उसकी तरफ आकर्षित होने लगी थी. धीरे धीरे यह आकर्षण प्रेम में बदल गया. उसे लगता था कि बात एक तरफा है. लेकिन एक दिन जब वह घर पर थी तो उसे रॉकी का एस एम एस मिला 'यूं तो गुलशन में कई फूल हैं लेकिन मुझे तो एक ही पसंद है.'

अवनि समझ गई कि यह बात उसी के लिए कही गई है. वह खुशी से उछल पड़ी. फिर भी उसने मैसेज किया.

'वह खुशनसीब फूल कौन सा है.'

मैसेज भेज कर वह जवाब का इंतजार करने लगी. कुछ ही मिनटों में जवाब आया.

'वो हसीन फूल तुम हो.'

उसके बाद दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं. हर मुलाकात के बाद रॉकी का जादू उस पर और भी गहरा होता गया. रॉकी का असली नाम राकेश था. वह एक व्यवसायी घराने से था. उसकी चकाचौंध भरी ज़िंदगी के आकर्षण में अवनि खिंचती चली गई.

साल का आखिरी दिन था. सभी पार्टी के मूड में थे. रॉकी ने अवनि को अपने फॉर्महाउस में आयोजित पार्टी के लिए निमंत्रित किया.

"मम्मी पापा मुझे कभी इसकी इजाज़त नहीं देंगे. मेरा आना तो मुश्किल होगा."

"मैं कुछ नहीं जानता. कुछ भी करो तुम्हें आना ही होगा. समझ लो यह तुम्हारे प्यार का इम्तिहान है."

रॉकी का तीर निशाने पर लगा. वह किसी भी तरह अपने प्यार को साबित करना चाहती थी. उसने पहली बार अपने मम्मी पापा से झूठ बोला कि पार्टी उसकी एक सहेली के घर पर है. वहाँ उसके परिवार और एक दो अन्य सहेलियों के अलावा कोई नहीं होगा. उसकी ज़िद पर उसके मम्मी पापा ने सहमति दे दी.

रॉकी तय जगह पर उसे मिला और अपनी कार से उसे फॉर्महाउस ले गया. फॉर्महाउस पर पहुँच कर अवनि ने देखा कि वहाँ उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था. उसने रॉकी से पूंछा तो वह बोला "क्या दो लोग पार्टी नहीं कर सकते. हम दोनों मिलकर नए साल का स्वागत करेंगे."

दोनों संगीत की धुन पर नृत्य कर रहे थे. नाचते हुए अवनि को प्यास लगी. रॉकी उसके लिए सॉफ्टड्रिंक लेकर आया. सॉफ्टड्रिंक पीने के कुछ ही क्षणों बाद अवनि की आँखें भारी होने लगीं. कुछ ही देर में वह बेहोश हो गई.

सुबह जब वह होश में आई तो उसे अपनी स्थिति से समझ आ गया कि रॉकी ने उसका फायदा उठाया है. वह गुस्से से भर उठी. जब वह बाहर आई तो देखा कि रॉकी पूल के किनारे किसी से फोन पर बात कर रहा था. बातचीत से उसे अंदाज़ हो गया कि दूसरी तरफ कोई लड़की है. अवनि ने झटके से उससे फोन छीन कर काट दिया. उसकी आँखों से अंगारे बरस रहे थे. रॉकी बेशर्मी से मुस्कुरा कर बोला "क्या बात है बहुत गुस्से में हो."

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे साथ ऐसा करने की. तुमने मुझे धोखा दिया है."

"कैसा धोखा. अब तुम इतनी भोली मत बनो तुम्हें सब पता था."

"झूठे तुमने मेरे ड्रिंक में दवा मिलाकर मेरा फायदा उठाया है."

"तुमसे जो करते बने कर लो." रॉकी ने उसे धमकाते हुए कहा.

अवनि अपने घर आ गई. वह बहुत परेशान थी. कई बार उसने पुलिस के पास जाने की बात सोंची किंतु हर बार बदनामी के डर से पीछे हट गई. वह पछता रही थी कि क्यों उसने रॉकी पर यकीन किया. क्यों वह उसके झांसे में आ गई. उसे उसके कॉलेज में पढ़ने वाली मेघा ने रॉकी के बारे में बताने का प्रयास भी किया था. किंतु तब वह रॉकी के प्रेम में अंधी थी. उसे लगता था कि रॉकी ने सब लड़कियों को छोड़ उसे चुना है. इसलिए सभी लड़कियां उससे जलती हैं. मेघा भी उनमें से एक है. अब वह सोंचती थी कि काश ऐसा होता कि उसने मेघा पर यकीन किया होता.

उसकी यह परेशानी उसके मम्मी पापा से भी छिपी नहीं रही. पहले तो वह उसकी इस बेवकूफी पर बहुत नाराज़ हुए. पर अवनि की ग्लानि को देखकर उन्होंने अपना रुख बदल दिया. वह उसे इस दुख की स्थिति से बाहर निकालने का प्रयास करने लगे. लेकिन वह दोनों भी कानूनी कार्यवाही के पक्ष में नहीं थे.

माता पिता के सहयोग और प्रोत्साहन से अवनि धीरे धीरे उस सदमे से बाहर आने लगी. उसने अपना एम.बी.ए पूरा किया और नौकरी करने लगी.

अवनि के फोन में एक मैसेज आया. उसकी आवाज से वह अपने खयालों से बाहर आ गई. मैसेज रॉकी का था. उसने उसे एक होटल में मिलने के लिए बुलाया था. अवनि ने विचार किया कि सुधीर आधी रात के बाद लौटेंगे. तब तक वह जाकर वापस आ सकती है. सुयश की आया को आवश्यक निर्देश देकर वह चली गई.

रॉकी उसकी प्रतीक्षा कर रहा था. अवनि ने कमरे में घुसते ही पूंछा "मुझे क्यों बुलाया है."

"कुछ देर दम ले लो इतनी जल्दी क्या है. कुछ पिओगी. बोलो क्या लाऊं." रॉकी मुस्कुराते हुए बोला.

"बकवास मत करो. बोलो तुम्हें क्या चाहिए."

"तुम तो सीधे मुद्दे पर आ गईं."

"तुम्हारी औकात समझ गई हूँ. कितने पैसे चाहिए. लेकिन फिर कभी अपनी मनहूस शक्ल मत दिखाना." अवनि नफरत से बोली.

"पैसों की कमी नहीं है मुझे. चाहत है तो बस तुम्हारी."

अवनि सिर से पैर तक क्रोध में जल उठी "खबरदार अपनी हद में रहो." कह कर उसने रॉकी को ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया.

रॉकी तिलमिला उठा और घायल शेर की तरह उस पर टूट पड़ा. अवनि खुद को बचाने के लिए संघर्ष करने लगी. रॉकी गुस्से में था. वह उस पर भारी पड़ रहा था. अवनि उसके चंगुल से निकलने की पूरी कोशिश कर रही थी. लेकिन सफल नहीं हो पा रही थी. वह पस्त हो गई थी.

तभी कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई.

"दरवाज़ा खोलो. पुलिस है."

आवाज़ सुनकर रॉकी घबरा गया. वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे.

"जल्दी खोलो नहीं तो दरवाज़ा तोड़ देंगे."

रॉकी ने अवनि को धमकाया कि किसी से कुछ ना कहे और बाथरूम में छिप जाए. अवनि को छिपा कर उसने दरवाज़ा खोल दिया. उसे धकेलते हुए सुधीर दो पुलिस वालों के साथ भीतर घुस गया. उसने अवनि को पुकारा. उसकी आवाज़ सुनते ही अवनि बाहर आ गई. वह भाग कर सुधीर के सीने से लग कर रोने लगी. पुलिस ने रॉकी को हिरासत में ले लिया.

अवनि सुयश को गोद में लेकर बैठी थी. वह शांत थी और अपने आप में घुली जा रही थी. सुधीर सामने बैठा था. वह भी चुप था. अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए वह बोला "काश तुमने मुझ पर यकीन किया होता. मुझसे अपनी पकेशानी बताई होती. पर शायद कमी मुझमें ही थी. इसीलिए तुम मुझे समझ नहीं पाईं."

"ऐसा नहीं है. मैं आपको समझती हूँ. यदि आप मेरे जीवन में ना आए होते तो मैं अपने दिल की कड़वाहट में घुटती रहती. आप ने तो मेरी ज़िंदगी को खुशियों से भर दिया. इसी कारण से मैं नहीं चाहती थी कि मेरे अतीत की स्याही आप पर पड़े."

"तुम अगर परेशान होगी तो मैं कैसे खुश रह सकता हूँ. तुम क्या समझती हो तुमने नहीं बयाया तो क्या मैं परेशान नहीं हुआ. तुम्हें अकेले घुटते देख मैं मन ही मन घुटता रहा. अपने स्तर पर तुम्हारी परेशानी के बारे में पता करने की कोशिश करता रहा."

उसकी बात सुन कर अवनि को मन में बहुत ग्लानि हुई. उसने माफी मांगते हुए पूंछा "आपको कैसे पता चला कि मैं उस होटल में हूँ."

सुधीर ने सारा किस्सा सुनाया "मैं तुम्हारे बारे में सोंच कर परेशान था. इसलिए अपना काम जल्दी निपटा कर तुमसे बात करने के लिए घर लौट आया. घर पहुँच कर आया ने बताया कि तुम कहीं बाहर गई हो. उसने यह भी बताया कि तुम बहुत परेशान थीं. मैं परेशान होकर सोंचने लगा कि तुम कहाँ गई होगी. तभी मेरी नज़र तुम्हारे फोन पर पड़ी. तुम जल्दी में फोन छोड़ कर चली गई थीं. फोन में मैसेज पढ़ कर मैं फौरन पुलिस को लेकर वहाँ पहुँच गया."

अवनि ने सुयश को बिस्तर पर लिटाया और जाकर सुधीर की छाती से लग गई. वह ज़ोर ज़ोर से रो रही थी "मुझे माफ कर दीजिए. मेरी वजह से आपको बहुत तकलीफ झेलनी पड़ी."

उसे शांत कराते हुए सुधीर बोला "यह बात कभी मत भूलना कि मैं तुमसे सच्चा प्रेम करता हूँ."

अवनि सुधीर की छाती से लिपटी रही. दोनों की आँखों से आंसू बह रहे थे. दोनों का प्रेम और निखर रहा था.