ये मोह-मोह के धागे ....

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गीत की बहुत अच्छी तैयारी हुई। दोनों ने ही बहुत सुन्दर गाया। गाना बहुत सराहा गया। उस दिन का कार्यक्रम भी बहुत मज़ेदार था, हास्य रस से भरपूर ! कार्यक्रम के बाद तक सभी प्रतियोगी इसकी चर्चा करते रहे थे। सभी प्रफुल्लित और खुद को तरोताज़ा महसूस कर रहे थे। अगले दिन दूसरे गीत की तैयारी करनी थी, सारे दिन की थकान और तनाव भी था इसलिए सभी जल्दी ही सोने के लिए चले गए। राग अपनी माँ से देर तक बातें करती रही। जहाँ अलोक का जिक्र उसकी आँखों की चमक बढ़ा रही थी, वहीँ उसकी माँ के मन में चिंता भी बढ़ा रही थी कि अगर राग का झुकाव अलोक की तरफ हो गया तो वह क्या कर सकेगी। घर पर क्या जवाब देगी आदि -आदि .....सोचते हुए उनकी आँख लग गई। सुबह राग के कानों में एक मधुर स्वर लहरी पड़ी तो उसकी आँख खुल गई। यह अलोक है ! इसे चैन नहीं पड़ता क्या आवाज़ की और खींची चल पड़ी। वह लॉन में गा रहा था। सच में मधुर गीत था। मन को छू लेने वाला। अच्छा तो, वो तुम हो ! तुम हो....! गाते हुए पलटा तो सामने राग को खड़ी पाया। देख कर चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान आ गई। तुम्हे चैन नहीं पड़ता क्या इतनी सुबह-सुबह ही ....