संत जी बनाम 512

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प्रस्तुत कहानी प्रेममय-त्यागमय रिश्तों पर भारी स्वार्थअंधता और धन लोलुपता को आधार बनाकर सृजित कहानी संत जी बनाम 512 का अंतिम भाग है। कहानी के इस भाग में संत जी का दोहरा चरित्र उजागर होता है ।