ढाक के तीन पात

  • 10.4k
  • 1.1k

21वी शताब्दी में, इंटरनेट के युग में जब व्यक्ति ढेरों सूचनाएं एक छोटी सी चिप में लेकर घूमता है पूरा ब्रह्मांड एक गांव बन गया है, तब आज भी ऐसी अनेक निरर्थक रूढ़ियां परंपराओं के नाम पर ढोए जा रही है और ढोने के लिए विवश किया जा रहा है, जिनकी वर्तमान युग में प्रासंगिकता समझ से परे है । इनको ढोने वाले स्वयं इनके किसी तार्किक पक्ष को नहीं समझते किंतु अपने पक्ष को धक्का मार ढंग से मनवाना उनकी आदत बनी हुई है । यही तथ्य ढाक के तीन पात कहानी का मूल भाव है ।