इम्तहान - Story compitition

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टेलीफोन की ट्रिन-ट्रिन मेरे मस्तिष्क में अभी तक गूंज रही है। ओह! वेदना के दंश मेरे हृदय को बेधने लगे- जैसे किसी ने शरीर में से सारा रक्त निचोड़ लिया हो। निढ़ाल हुई मैं वहीं सोफे के किनारे सिर पकड़ कर बैठ गई। आंखों में यशोधरा दीदी का हंसता मुस्कुराता चेहरा घूमने लगा- दीदी दोनों हाथ फैलाए छोटे से बच्चे के पीछे भागी जा रही है। ओह! मैंने मन को कड़ा कर दिमाग में उठे इस बवंडर को, बाहर धकेलना चाहा किन्तु कितना मुश्किल, मैं चाहकर भी यशोधरा दीदी को अपने विचार केन्द्र से ओझिल नहीं कर पा रही हूं। करती भी हूं तो कैसे पा