तिलिस्म...

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इस कहानी को ना जाने कब से जीती आ रही थी सुमि। फिर आज हुई घटना को सोच कर मुस्कुरा पड़ी और फिर अपने राजकुमार के बारे में सोचने लगी। चेहरा तो उसको ध्यान ही नहीं आ रहा कैसा था वो तो बस खो ही गयी थी। फिर अचानक ध्यान आया की उसकी नाक ,अरे हाँ उसकी नाक कितनी सुंदर थी उसका तो दिल ही वही अटक गया। शीशे के सामने खडी बाल संवारती -संवारती अचानक रुक कर उसका नाम सोचा तो हंसी आ गयी , लक्ष्य वीर सिंह नाम भी कैसा है जैसे धनुष से तीर ही छोड़ना हुआ हो ! एक तीर तो चला और सीधे सुमि के ह्रदय को बींध गया। जितनी बार ही नाम लिया एक तीर सा चल गया और हर बार ह्रदय बींधता गया। सोचते-सोचते सुमि कब न जाने सो गयी।