शर्माजी बिना कुछ बोले भीतर चले गए. वैभव और गायत्री असमंजस में थे कि उनका निर्णय क्या होगा. कुछ देर बाद शर्माजी बाहर आए. उनके हाथ में पूजा की थाली थी. उन्होंने वैभव को तिलक लगाया और चांदी की गणपति प्रतिमा उसके हाथ में रख कर बोले तुम दोनों का मेल तो ईश्वर ने तय किया है. अब दोबारा उसकी इच्छा के विरुद्ध नही जाउंगा. वैभव ने उनके पांव छुए और गायत्री उनके गले से लग गई.