अचानक उसकी आँख खुली तो अभ्यासवश उसने पलँग की पुश्त पर रखा मोबाइल उठाकर क्लिक किया, सुबह के पाँच बजकर पचपन मिनट हो चुके थे। एक झटका सा लगा,आँखों मे छाई नींद की ख़ुमारी काफ़ूर हो गई। सारा आलस्य एकदम से विलीन हो गया। उसने फुर्ती से मोबाइल में सन्देश वाला आइकॉन क्लिक किया। देखा ठीक साढ़े पाँच बजे के कबीर के कई सन्देश पड़े थे। ' उठ रहा हूँ।' ' अभी आँख नही खुल रही।' ' उठ गया, आता हूँ दस मिनट में।' ' तुम्हारे लिये चाय बना रहा हूँ।' ' बन गई चाय, लो पहला घूँट। ' '