दो मुँहवाला साँप

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धीरे-धीरे शाम पसर रही थी और ठंड ने फैलना शुरु कर दिया था। सूरज ने अपना सुनहरा आँचल वापस खींच लिया था मगर रात ने अभी भी अपनी काली चादर नहीं ओढ़ाई थी।सिंक में अपने हाथ धोते हुए उर्मिला ने मुँह उठाकर रसोई की बंद खिड़की देखी। जाली के उस पार झाड़ी में कुछ हिल रहा था। उर्मिला ने नज़र गड़ाकर देखा। हरे रंग का एक चिकना दो मुँहा साँप रेंग रहा था।उर्मिला के माथे पर लकीरें जमने लगीं । साब जी कितना परेशान है। आँख से पता चलता है कि रात को सोया नई है। बीबी जी का भी