खिल उठा वसंत

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और दिनो की अपेक्षा रविवार को वह थोड़ी देर तक सोती है। खिड़की से ठंडी हवा भीतर आ रही थी। मैना और कौए के चिंचियाने के सम्वेत स्वरों से उसकी नींद खुल गई। "अब सुबह - सुबह इन्हें क्या परेशानी हो गई?" बुदबुदाते हुए उसने अलसाई आँखों से दीवार पर लगी घड़ी में वक्त देखा। सात पचपन हो रहे थे। एक लम्बी भरपूर अंगड़ाई लेते हुए पिछली रात चैन की नींद देने के लिए उस उपरवाले का शुक्रिया अदा किया। सुबह के दैनंदिन कार्यों से निबट कर वह कॉफ़ी का मग लिए लॉन पर आ गई। नाश्ते के बाद मग