स्वाभिमान - लघुकथा - 20

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साहब अभी-अभी मंत्री जी की कोठी से लौटकर दफ़्तर के अपने कमरे में आए थे। मंत्री जी ने साहब के विदेश जाने की फाइल पर हस्ताक्षर तो कर दिए थे, मगर ऐसा करने से पहले साहब को जैसे रुला ही दिया था। साहब को पिछले कई दिनों से मंत्री जी की चिरौरी तो करनी ही पड़ी थी, साथ ही कई नियमविरुद्ध काम कर देने की हामी भी भरनी पड़ी थी। साहब को विदेश जाने की ख़ुशी में अपने स्वाभिमान का हनन यूँ लग रहा था जैसे स्वादिष्ट मिठाई खाते हुए बीच में कुनैन की कड़वी गोली आ गई हो।