स्वाभिमान - लघुकथा - 28

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प्रवीन गुस्से से भरा बैठा था, चीखता हुआ बोला अन्तिम बार कह रहा हूं शशि ! मेरी बात तुम्हें मान लेनी चाहिये.. वरना ठीक नही होगा । क्या ठीक नही होगा..बचा ही क्या है अब..इस मजबूरी और दबाव की शादी में, नही माननी चाहिये थी मुझे किसी की भी बात ,