स्वाभिमान - लघुकथा - 31

  • 3.2k
  • 776

‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की तपिश को किशोरावस्था में उन्होंने बड़े करीब से महसूस किया था संगी – साथियों के साथ ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो”… ‘वन्देमातरम” के नारे लगाये थे निर्भीकता का पहला पाठ गोरे सिपाहियों से आँख मिचौली खेल कर ही सीखा था उन्होंने देश आजाद हुआ, तो उन्होंने एक इंटरकॉलेज में अध्यापक की नौकरी पकड ली धीरे – धीरे तरक्की पाकर वह कॉलेज के प्राचार्य तो बन गये, पर उनकी वेशभूषा, उनका पहनावा नहीं बदला… वही खादी का कुर्ता-धोती, गाँधीटोपी, गले में अगुचा, जिसे गर्मियों में तपती धूप से बचाव के लिए वह पगड़ी की तरह सिर पर बांध लेते थे