जीवन के रंग...

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आकाश में, कोई छुपा प्रिज्म हो शायद...जिसने प्रकाश को, सात रंगों में छितराया था. अम्बर के सीने को मथकर, रंगीन धाराएँ फूट पड़ीं! वर्षा ने गगन को धो- पोंछकर चमकाया और रंग इन्द्रधनुषी वक्र में सिमट आये. नन्हीं बदलियां उसे छूते हुए निकलतीं... इन्द्रधनुषी आभा में स्नान करतीं... मंथर गति से, गगन में डोलती हुईं- यथा रैंप पर सुंदरियां! “ममा” अंतरा के स्वर ने, वर्तिका की तंद्रा भंग कर दी. वह चौंकी और बिटिया की तरफ देखा. अंतरा बहुत उत्तेजित जान पड़ती थी, “ममा बड़ी मम्मी से बोलो- यहाँ से चली जाएँ.” “क्या हुआ भई... सुबह सुबह इतना हाई टेम्परेचर??