जनजीवन भाग ४

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अहा जिन्दगी मानव की चाहत जीवन सुख-शान्ति से व्यतीत हो इसी तमन्ना को भौतिकता में खोजता समय को खो रहा है। वह प्राप्त करना चाहता है सुख, शान्ति और आनन्द वह अनभिज्ञ है सुख और शान्ति से क्षणिक सुख से वह संतुष्ट होता नहीं वह तो चिर-आनन्द में लीन रहना चाहता है। मनन और चिन्तन से उत्पन्न विचारों को अन्तर्निहित करने से प्राप्त अनुभव ही आनन्द की अनुभूति है वह हमें परम शान्ति एवं संतुष्टि की राह दिखलाता है। हमारी मनोकामनाएं नियंत्रित होकर असीम सुख-शान्ति और अद्भुत आनन्द में प्रस्फुटित होकर मोक्ष की ओर अग्रसर करती हैं। तुम करो