सुनहरा फ्रेम

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कुछ अलौकिक पलों को दुबारा निराकार तौर पर जीने की आत्मछलना का ही दूसरा नाम है 'स्मृति'. एक स्मृति जिसमें वह खुद थी और वह था, अब वह उस पर फ्रेम लगाने की कोशिश में है. एक सुनहरा फ्रेम. समय को पलटा लाना चाहती है, बिना मूवी कैमरे की गुस्ताख आँख के. फरवरी के शुरु की हवा अब तक उसकी यादों में बह रही है, जब मैदानों की घास धूप में नहा रही थी. वृक्षों की परछाइयां उनके करीब सरक रही थीं. वे मानो अपने ही सपनों में मंडरा रहे थे.