बड़ी मां

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दफ्तर जाते समय सुधा जब मुझे दरवाजे तक छोडऩे आई तो मेरे साथ उसकी नजर भी उस मुस्कराते चेहरे पर जा टिकी जो एकटक मंद-मंद मुस्कान के साथ मुझे निहार रहा था। इस तरह सार्वजनिक रूप से एक युवा महिला का मेरी पत्नी के सामने ही मुझे निहारना विकट स्थिति उत्पन्न कर गया। कोई और मौका होता तो शायद मैं भी उस मधुर मुस्कान का जवाब इसी तरह मुस्कराते हुए देता लेकिन पत्नी पास होने के कारण मैं झेंपकर रह गया। इसके विपरीत सुधा का चेहरा तमतमा गया। वह मुस्कराकर मुझे विदा करना भूलकर बड़बड़ाने लगी, 'बड़ी बेशर्म औरत है! दूसरों के पति को यूं निर्लज्जता से घूर-घूर कर देखती है, मानो कब्जा करना चाहती है।