प्रेम का अधूरा मिलन

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चाँदनी रात हो रही है, प्रीतिमा अपने प्रीतम से मिलन के लिए विरह की अग्नि में जल रही है। चंद्रमा का अलौकिक प्रकाश मानो प्रीतिमा को चिढ़ा रहा है। हवा भी प्रीतिमा की प्रीत से चिढ़ कर उसे परेशान करने को आतुर है। हवा ने अपने ठंडे स्पर्श से प्रीतिमा के विरह को और भी भड़का दिया अब प्रीतिमा को अपने प्रीतम पर थोड़ा गुस्सा आया। इतनी देर कर दी, क्या उसे मेरी परवाह नही? मैं यहाँ दुनिया की लोक लाज को छोड़ कर उसके इंतजार में पल पल तड़प रही हूँ। अरे! ये क्या, मैंने अपने प्रीतम पर शक