फण्डा यह है कि

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तीस वर्ष का समय बहुत होता है किसी युवा के स्नायुओं को ढीला और नजर को कमजोर कर बूढ़ा बना देने के लिये। इसीलिये अब खिलाड़ी की धसकती कमर में वह पुष्टता नहीं दिखाई देती जो मूर्तियों की साज—सज्जा करते हुये घण्टों खड़े रहने के लिये लाजिमी होती है। हॉं, ऊॅंगलियों में बहुत तराश बाकी है। लेकिन लोगों, खास कर यह जो नई पीढ़ी भरपूर युवा होकर भरपूर नयेपन के साथ ठीक सामने है, की आस्था को कुछ हो गया है।