हवाओं से आगे - 16

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सुरेखा ने खिड़की से बाहर झाँककर देखा, पिछली रात से झूमकर चढ़ी काली बदली लगातार बरस रही थी यूँ लग रहा था जैसे एक ही रात में बरसकर पिछले सारे मौसमों की कसर पूरी कर लेना चाहती हो ज़रा दूर निगाहें दौड़ाई तो मरीन ड्राइव पर लोगों का जमघट ज्यों का त्यों जुटा नज़र आया छातों में दुबके एक-दूजे के काँधों पर सिर टिकाए अनेक प्रेमिल जोड़े बैठे दिखे पता नहीं किस सुख की चाह में सुबह की पहली किरण उगते ही यहाँ अनेक लोग आ बैठते हैं और फिर वेषभूषा का तो फर्क ही है वरना ये नज़ारे किसी विदेशी धरती से कम नहीं हैं अब