खिलता है बुरांश ! - 1

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....आज सांवली शाम का जादू गायब था! वह टहलुई सी चलती रही..., मन का बेड़ा अभी अचानक उठे तूफान के बीच फंसा था...! एक पल को उसके जेहन में खौफनाक विचार उठा - समाप्त कर दे काया माँ... निर्जीव देह को अब और नहीं घसीट सकेगी वह..., जब प्राण ही देह से चले गये तो अपनी ही लाश को ढोने का क्या तुक...? मौत का सोचते ही देह में झुर्रझुर्री उठी ‘‘अभी अभी तो जिंदगी मिली थी... कितनी आसक्ति थी उसे देह से...!