कंधा

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"कितनी डरपोक हो तुम ,तुम्हें छोड़ कर मैं कहीं नहीं जा सकता ।अच्छे भले बन्द घर में भी डर लगता है तुम्हे ,ऐसा कब तक चलेगा ",सोमेश की आवाज़ में एक खीज थी ।"क्या करूं ये मेेेरा खानदानी डर है ,इससे बाहर निकलना बहुुत कठिन है ", सुमित्रा ने बड़े प्यार से सोमेश के कंधे पर सिर रख कर कहा । ।प्रौढ़ावस्था में किए गए विवाह को सुमित्रा छोटी छोटी बातों से टूटने की दिशा में नहीं ले जाना चाहती थी । इसलिए वह बहुत सी बातो को सुना अनसुना कर देती थी ।सोमेश से अपनी पहली मुलाकात सुमित्रा कैसे