कमसिन - 27

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सुबह हो गयी थी ! आज कल्पना को उठने की इच्छा नहीं हो रही थी ! वह ऐसे ही लेटी रहना चाहती थी लेकिन माँ की पूजा और उनकी घन्टी की ध्वनि ने उसे उठने को मजबूर कर दिया था वह राजीव के बालों को हौले से सहलाकर प्यार की नजर से देखती हुई हंस दी थी कितने प्यारे लगते हैं और कितने भोले भी लेकिन सिर्फ सोते समय रात की खुमारी बरकरार थी, प्यार भी, शरारतें जो राजीव ने की थी सोंचती हुई वह मुस्कुरा उठी थी यहीं तो दाम्पत्य जीवन का सुख है इसी में सृष्टि समाई हुई है, उसके बिना तो दुनिया चल ही नहीं सकती, हर स्त्री-पुरूष एक दूसरे के बिना अधूरे हैं