माँमस् मैरिज - प्यार की उमंग - 9

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रूको रघु। गणेशराम चतुर्वेदी ने रघु के कन्धे पर हाथ रखकर कहा। ये मेरी पेंशन के रूपये है। अपनी चालिस वर्ष की सेवा में मुझे एक भी दिन ऐसा याद नहीं आता जब मैं अपने विद्यालय विलंब से गया हूं या फिर अकारण ही छुट्टी ली हो। इन पांच हजार रूपयों को पचास हजार रुपये बनाना तुम्हारे परिश्रम पर निर्भर करता है। रघु के मन पर गुरुजी ने अमिट छाप छोड़ दी थी।