सोच और संघर्ष

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अरे आज भी तुम ये छोटी छोटी मछलियां पकड़ लाये , कितनी बार समझाया की समुद्र में थोड़ी दूर तक जाओ , थोड़ी बड़ी मोटी मछली लाओ ,कुछ आमदनी बढे और कुछ हमारा रहन सहन ऊंचा हो, कब तक इस झोपड़ नुमा घर में रहेंगे, ये पुराने पुराने कपडे और बर्तन ही हमारी ज़िंदगी में दिखेंगे,तुम पता नहीं कैसे संतोषी जीव हो , ऊंची सपने देखना तो दूर उनको सोचते भी नहीं हो.संतोष परम धर्म बेशक हो पर कब ये धर्म अपनाना है इसका एक समय और एक स्तर तो हो. अब नौशीन और अब्दुल दोनों स्कूल जाने लगे है,