जीवनसाथी

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"सुनो! मैं तुम्हारा अपराधी हूँ। मैं जानता हूँ कि मैंने तुम्हारे साथ अन्याय किया है। जीवन के तीस बसंत तुमने मेरे इंतज़ार में गुजार दिए, उनको तो मैं नहीं लौटा सकता, किन्तु जीवन का यह अंतिम प्रहर मैं तुम्हें अकेले नहीं गुजारने दूँगा। दोनों बच्चे अपनी जिंदगी में व्यस्त भी हैं और मस्त भी, मैं मिलकर आ रहा हूँ उनसे। वे भी खुश हुए यह जानकर कि अब पापा मम्मी साथ रहेंगे तो वे भी निश्चिंत रह सकेंगे। मुझे एक मौका और दे दो अपनी जिंदगी में आने का.... वादा करता हूँ अब कभी अकेलेपन का दंश