मेरी चार कविताए

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घोटालेवाला सर्दी की एक सुबह जब मैं धूप में बैठा ‘क्लासीफाइड‘ में नौकरी तलाश कर रहा था - अचानक , गली से आती हुई , एक आवाज़ कानों से टकराई । रातों -रात अमीर बनाने वाला स्वर्ग की सैर कराने वाला लो आ गया , घोटालेवाला घोटालेवाला । सब्सिडी ‘कैश‘ कराने को , इनकम टैक्स बचाने को सस्ती जमीन हथियाने को , शहर में ‘दंगा‘ करानेे को लो आ गया , घोटालेवाला घोटालेवाला । आओ बाबू, आओ लाला आज ही अपना भाग्य बना लो - घोटाले करवालो , घोटाले करवालो । मैंने , उसे बुलाया और पूछा -