माँ की पूर्ति

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सरद बाबू को विद्यालय की ओर से माँ के ऊपर कुछ पंक्तिया लिखी मिली जिसको उनके बेटे ने लिखा था पुत्र द्वारा लिखी पत्रिका पड़ पिता के भीतर संवेदना की धारा उमड़ आई पुत्र प्रेम की भावना उफान मारने लगी और अंत मे सबकुछ नेत्रों से प्रवाहित हो गया एकाएक सरद बाबू के मन मे विचारों का तूफान आ गया मन ही मन बोले नहीं नहीं मैं अपने बोध बालक पर अन्याय नहीं होने दूंगा मुझे क्या अधिकार है के उसको माता के स्नेह और प्रेम से वंचित रखु भले ही मेरा जीवन दुखो के अंधकार मे रहा पर उसके बावजूद माँ