दीवाली

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आज सरला मुंह अंध्ंारे ही उठ बैठी थी । उसने पौ फअने तक तो आंगन की झाड़ू लगाकर हैण्डपम्प से पानी भी भर लिया था । पानी भरते-भरते उसका दम फूल गया था । चाहती थी थोड़ा बैठकर सुस्ता ले, मगर कैसे....। अभी तो उसे आंगन में गेरू डालकर लीपना है । चूने की आंगन की किनारों पर पुताई करनी है और आंगन सूख जाने पर सुंदर रंगोली बनानी है । और कुूछ तो है ही नहीं उसके पास सजाने-संवारने को । कलक्टर की तरफ से परिवार नियोजन के लिये अपना ऑपरेषन करवाने पर उसे छत्तीस गज का यह ज़मीन का टुकड़ा मिल गया है जिस पर आस-पास पहाड़ों से बीन-बीनकर पत्थरों को इकट्ठा कर उसने मुंहबोले भई से चारों दीवारें उठवा दीं थीं ।